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गृहस्थ धर्म
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करनी चाहिए 1' (४) गृहस्थ को किन किन सद्गुणों से युक्त होना चाहिए; इसके संबंध में बुद्ध का निर्देश है कि जो गृहस्थ बुद्धिमान्, सदाचारपरायण, स्नेही, प्रतिभावना, निवृत्तवृत्ति, आत्मसंयमी, उद्योगी, निरालस, आपत्ति में नहीं डिगने वाला, निरन्तर कार्य करनेवाला एवं मेधावी होता है, वही यश को प्राप्त करता है, अर्थात् उपर्युक्त गुणों से युक्त होकर ही यशस्वी गृहस्थ जीवन जिया जा सकता है 12 (५) गृहस्थ उपासक को इन दुर्गुणों से बचने का निर्देश दिया है - (अ) जीव हिंसा, चोरी, झूठ और पर स्त्रीगमनक्योंकि ये कलुषित कर्म है । (ब) जुआ, कुसंगति, आलस्य, अतिनिद्रा, अनर्थकरना, लड़ना झगड़ना और अतिकृपणता कलुषित कर्म हैं क्योंकि ये ऐश्वर्य विनाश के कारण हैं । ( स ) मद्यपान - यह धन की हानि करता है, कलह को बढ़ाता है रोगों का घर है, अपयश को उत्पन्न करता है, लज्जानाशक और बुद्धि को दुर्बल बनाने वाला है । 3
अष्टशील
सुत्तनिपात में धम्मिक सुत्त में बुद्ध ने गृहस्थ धर्म के अष्टशील का विवेचन किया है । वे कहते हैं कि 'मैं तुम्हें गृहस्थ-धर्म बताता हूँ जिसके आचरण से श्रावक सदाचारी होता है, क्योंकि सम्पूर्ण भिक्षु धर्म परिग्रही से प्राप्त नहीं है ।'
पंच सामान्य शील (१) अहिंसा शील-संसार के स्थावर और जंगम सब प्राणियों के प्रति हिंसा का त्याग, न तो प्राणी का वध करे, न करावे और न करने की दूसरों को अनुमति ही दे । (२) अचौर्यं शोल -- दूसरे की समझी जाने वाली किसी चीज को चुराना त्याग दे, न चुरावे और न चुराने की अनुमति ही दे । चोरी का सर्वथा परित्याग करे । (३) ब्रह्मचर्य या स्वपत्नी सन्तोष - जलते कोयले के गड्ढे की तरह विज्ञ अब्रह्मचर्य को त्याग दे । ब्रह्मचर्य का पालन असम्भव हो तो पर-स्त्री का अतिक्रमण न करें । (४) अमृषावाद शील- किसी सभा या परिषद् में जाकर न तो एक दूसरे को असत्य बोले, न बुलवावे और न बोलने की अनुमति ही दे । मिथ्या भाषण सर्वथा त्याग दे । (५) मद्यपान विरमण शील - इस धर्म का इच्छुक गृहस्थ मद्यपान का परिणाम उन्माद जानकर न तो उसका सेवन करे, न पिलावे और न पीने की अनुमति दे |
परित्याग - रात्रि में एवं विकाल में
तीन उपोषथ शील" (६) विकाल भोजन भोजन न करे । (७) माल्य गन्ध विरमण - माला न करे । (८) उच्च शय्या विरमण - काठ, जमीन या भिक्षु संघ संविभाग - अन्न और पान से अपनी शक्ति के अनुसार श्रद्धापूर्वक प्रसन्नता से भिक्षुओं को दान दे ।
धारण न करे, सुगन्धि का सेवन सतरंजी पर लेटे ।
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१. दीघनिकाय, ३३८५ । ४. सुत्तनिपात २६।१९-२३ ।
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२.
५.
वही, ३१८२५ ।
वही, २६।२४ - २६ । ६.
३. वही, ३।८।५, ३३८|२|
वही, २६।२८ ।
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