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________________ गृहस्थ धर्म २९५ विचार हैं तथा दूसरे को दुःख देने का क्रूरतापूर्ण संकल्प रौद्र विचार है। जैन आचार दर्शन के अनुसार सामायिक की साधना में गृहस्थ साधक को इन अप्रशस्त विचारों को मन में स्थान नहीं देना चाहिए। इनके स्थान पर मैत्री, प्रमोद, करुणा और मध्यस्थता की प्रशस्त भावनाओं को प्रश्रय देना चाहिए । सामायिक पाठ-श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराओं में सामायिक पाठ भिन्न-भिन्न हैं । मूलागमों में गृहस्थ सामायिक का विस्तृत विधान नहीं मिलता । परम्परागत धारणा ही प्रमुख है। श्वेताम्बर परम्परा में नमस्कार मंत्र, गुरु वन्दन सूत्र, ईपिथ आलोचन सूत्र, कायोत्सर्ग आगारसूत्र स्तुतिसूत्र, प्रतिज्ञासूत्र, प्रणिपातसूत्र और समाप्ति आलोचना सूत्र-ये सामायिक पाठ हैं। दिगम्बर परम्परा में आचार्य अमितगति के द्वारा रचित ३२ श्लोकों का सामायिक पाठ प्रचलित है, जिसमें आत्मालोचन, आत्मावलोकन तथा मैत्री, करुणा, प्रमोद एवं माध्यस्थ भावनाओं का सुन्दर चित्र उपस्थित किया गया है। सामायिक व्रत का सम्यक्रूपेण परिपालन करने के लिए मन, वचन और शरीर के ३२ दोषों से बचना भो आवश्यक हैं। बत्तीस दोषों में दस दोष मन से सम्बन्धित हैं, दस दोष वचन से सम्बन्धित हैं और बारह दोष शरीर से सम्बन्धित हैं। मन के दस दोष२-(१) अविवेक, (२) कीर्ति को लालसा, (३) लाभ की इच्छा, (४) अहंकार, (५) भय के वश या भय से बचने के लिए साधना करना अथवा साधना की अवस्था में चित्त का भयाकुल होना, (६) निदान (फलाकांक्षा), (७) फल के प्रति संदिग्धता, (८) रोष अर्थात् क्रोधादिभावों से युक्त होना, (९) अविनय और (१०) अबहुमान अर्थात् मनोयोग पूर्वक साधना नहीं करना । मन से होनेवाले दोष हैं। __ वचन के दस दोष-(१) असभ्य वचन बोलना, (२) बिना विचारे बोलना (सहसा बोलना, (३) स्वच्छन्दतापूर्वक बोलना या अधिक वाचाल होना, (४) संक्षेप या गूढार्थ में बोलना अथवा अयथार्थ रूप में बोलना या पढ़ना, (५) जिन वचनों से संघर्ष उत्पन्न हों ऐसे वचन बोलना, (६) विकथा-(स्त्री, राज्य, भोजन एवं लौकिक) बातों के सम्बन्ध में चर्चा करना, (७) हास्य-हँसी-मजाक करना, (८) अशुद्ध उच्चारण करना, (९) असावधानीपूर्वक बोलना या निरपेक्ष रूप से बोलना, (१०) अस्पष्ट उच्चारण करना या गुनगुनाना। शरीर के बारह दोष - (१) अयोग्य आसन से बैठना, (२) अस्थिर आसन (बारबार स्थान बदलना ', (३) दृष्टि की चंचलता, (४) हिंसक क्रिया करना अथवा उस को करने का संकेत करना, (५) सहारा लेकर बैठना, (६) अंगों का बिना किसी प्रयोजन १. देखिए-सामायिक पाठ (अभितगति)। ३. वही, पृ० ६१ । २. सामायिकसूत्र (अमरमुनि), पृ० ५७ । ४. वही, पृ० ६३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001675
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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