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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
प्रार्थामक तथ्य और गृहस्थ जीवन का अनिवार्य कर्तव्य है। गृहस्थ-साधना की दष्टि से
आचार का कुछ भाव पक्ष भी होना चाहिए। यद्यपि सामायिक में भी विधि- निषेध के नियम हैं, तथापि उसमें एक भाव पक्ष की अवधारणा भी की गयी है और यही इस व्रत की विशेषता है। सामायिक को शिक्षाव्रत कहा गया है । जैनाचार्यो की दृष्टि में शिक्षा का अर्थ है अभ्यास । सामायिक अर्थात् समत्व का अभ्यास । गृहस्थ जीवन के एक आवश्यक कर्तव्य के रूप में तथा गृहस्थ साधना के एक महत्त्वपूर्ण व्रत के रूप में इसका जो स्थान है वह इसके इस भावात्मक मूल्य के कारण है । यद्यपि इसका एक निषेध पक्ष भी है, तथापि वह हिंसा-अहिंसा की विवक्षा से अधिक अपना स्वतन्त्र मूल्य नहीं रखता। सामायिक की साधना एक ओर आत्म-जागृति है, एक सम्यक् स्मृति है, दूसरी ओर समत्व का दर्शन है। आसक्तिशून्य मात्र साक्षी रूप चेतना में 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' की सच्ची प्रतीति ही जैन विचारणा की सामायिक है, यही नैतिक आचरण की अन्तिम कोटि है और नैतिकता की सच्ची कसौटी भी; जिसके द्वारा साधक अपनी साधना का सच्चा मूल्यांकन कर सकता है। जो स्थान बौद्ध आचार दर्शन में सम्यक् समाधि का है, वही जैन साधना में सामायिक का है।
लेकिन यह साधना सहज होकर भी अभ्यास-साध्य है। इसमें निरन्तर अभ्यास कीअपेक्षा है, क्योंकि प्रमाद जो कि चेतना की निद्रा है, इसका सबसे बड़ा शत्रु है। प्रमत्त चेतना में समत्व दर्शन एक मिथ्या कल्पना है । अप्रमत्त मानस में समत्व की आराधना के लिए साधक प्रतिदिन कुछ समय निकाले और इस प्रकार अभ्यास द्वारा स्व की विस्मृति से आत्म-स्मृति को जगाकर सच्चे साक्षी के रूप में समदर्शी बन सके यही इस व्रत के विधान का प्रयोजन है ।
समत्व की साधना अप्रमत्त चेतना में ही सम्भव है, लेकिन गृहस्थ-जीवन की परिस्थितियां ऐसी हैं कि जब तक सतत् अभ्यास न हो इस अप्रमत्तता को बनाये रखना कठिन है। जीवन की सावद्य प्रवृत्तियाँ, कषाय और वासनाएँ चेतना को अप्रमत्त और निर्विकार नहीं रहने देती। जैसे मद्यपान के द्वारा बुद्धि विकृत और प्रमत्त बनती है वैसे ही सावध प्रवृत्तियों एवं वासनाओं में रस लेने से चेतना विकारी और प्रमत्त बन जाती है, अतः उस अप्रमत्त निर्विकार चेतना की उपलब्धि के लिए सावध प्रवृत्तियों से बचना आवश्यक है। गृहस्थ भी साधक की दृष्टि से सामायिक के दोनों पहलुओं पर विचार करना आवश्यक है। गृहस्थ के लिए यह भी आवश्यक है कि वह यह जानें कि उसे सामायिक में क्या नहीं करना चाहिए । गृहस्थ जीवन के लिए सामायिक के इस निषेधात्मक पक्ष का मूल्य तब और अधिक स्पष्ट हो जाता है जब हम यह जाने कि भव्य अट्टालिका के निर्माण के पूर्व पुराने मकान के मलबे की सफाई कितनी आवश्यक होती है । समत्व की उपलब्धि के लिए विगलित विचार और आचार का उन्मूलन एक अनि
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