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________________ २८६ जेम, बौद्ध तथा गीता के आधारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन अनेक बार किया जा सके, जैसे वस्त्र, शय्या आदि । प्रतिक्रमणसूत्र के अनुसार गृहस्थ साधक को उपभोग - परिभोग की निम्न २६ वस्तुओं का परिमाण और प्रकार निश्चित करना होता है ? – (१) उद्भवणिकाविधि - स्नान के पश्चात् भीगे हुए शरीर को पोछने के वस्त्र ( तौलिये ) का प्रकार और संख्या, (२) दंतधावन की वस्तुओं की संख्या और प्रकार जैसे - नीम, बबूल या मुलहट्टी, (३) फलविधि - केश और नेत्र आदि धोने के लिए विशेष प्रकार का फल जैसे आनन्द श्रावक ने बिना गुठली के आंवलों की मर्यादा की थी । (४) अभ्यंगन विधि - मालिश के काम आने वाले तेलों की संख्या और मात्रा । (५) उद्वर्तनविधि - पीठी या उबटन का प्रकार और परिमाण, (६) स्नानविधि - स्नान के लिए पानी की मात्रा, (७) वस्त्रविधि - पहनने के वस्त्रों का प्रकार जैसे ऊनी, सूती, रेशमी तथा उनकी संख्या, (८) विलेपनविधि-शरीर पर लेप करने की वस्तुएँ जैसे अगर चन्दन, कुंकुम आदि उनकी संख्या, (९) पुष्प - विधि - माला और सूंघने के पुष्पों के प्रकार जैसे - चमेली, मोगरा आदि । (१०) आभरणविधि - आभूषणों के प्रकार एवं संख्या । ( ११ ) धूपविधि - उन वस्तुओं की संख्या एवं मात्र जिन्हें जलाकर कमरों को सुगन्धित किया जाता है । ( १२ ) पेय - पेय पदार्थ जैसे- शर्बत आदि के प्रकार एवं मात्रा । (१३) भोजन — विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों में से स्वतः के भोजन के उपयोग के लिए भोज्य पदार्थों की संख्या एवं के प्रकार एवं मात्रा । (१५) सूप - दालों की तेल, घृत आदि के प्रकार एवं मात्रा । ( १७ ) शाक - बथुआ, पालक आदि शाकों के प्रकार एवं मात्रा । (१८) माधुरक - मीठे फल, सूखा मेवा, बदाम आदि के प्रकार एवं मात्रा । (१९) जेमन - दहीबड़े, पकौड़े आदि चरकी फरफरी वस्तुओं के प्रकार और मात्रा । (२०) पानी – पीने के पानी का परिमाण एवं प्रकार । इलायची, लवंग, पान, सुपारी आदि के प्रकार एवं मात्रा । (२२) नाव, जहाज आदि सवारी के साधनों की जातियाँ एवं संख्या । पगरखी, मौजे आदि की जाति एवं संख्या । (२४) सचित्त - अन्य सचित्त वस्तुओं की जाति एवं परिमाण । ( २५ ) शयन - शय्या, पलंग आदि के प्रकार एवं संख्या । (२६) द्रव्य - अन्य वस्तुओं की जाति एवं मात्रा । स्मरण रहे कि एक प्रकार के पदार्थों से बनी हुई वस्तुएँ भी अपने स्वाद के परिवर्तन के आधार पर अलग अलग वस्तुओं में (२१) मुखवास - ताम्बूल वाहन - घोड़ा, गाड़ी (२३) उपानह -जूते, मात्रा की मर्यादा संख्या एवं मात्रा । Jain Education International । १. टिप्पणी - उपभोग और परिभोग के उपर्युक्त अर्थ भगवतीसूत्र, शतक ७ उद्देशक २ में तथा हरिभद्रीयावश्यक अ० ६ सू ७ में है लेकिन उपासकदशांगसूत्र की टीका में अभयदेव ने उपर्युक्त अर्थ के साथ साथ इसका विपरीत अर्थ भी दिया है । उपासकदशांगसूत्र के प्रथम अध्याय में इनमें से केवल २१ वस्तुओं का निर्देश मिलता है । (देखिए उपासकदशांग १।२२-३८ । २. For Private & Personal Use Only (१४) ओदन - चावलों (१६) विगय - दही, www.jainelibrary.org
SR No.001675
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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