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जैन, बौद्ध तथा गोता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
होती है । आचार्य उमास्वाति के अनुसार अल्प अंश में विरति अणुव्रत है और सर्वांश में विरति महाव्रत है।
श्रावक को व्रत-विवेचना में श्वेताम्बर तथा दिगम्बर परम्पराओं का मतभेव-श्रावक के १२ व्रतों की संख्या के सम्बन्ध में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्पराएँ एकमत हैं । श्रावक के इन १२ व्रतों का विभाजन निम्न रूप में हुआ है-पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत । श्वेताम्बर आगम उपासकदशांग में ५ अणुव्रतों और ७ शिक्षाव्रतों का उल्लेख है । गुणवतों का शिक्षाव्रतों में ही समावेश कर लिया गया है। पाँच अणुव्रतों के नाम एवं क्रम के सम्बन्ध में भी मतैक्य है, लेकिन तीन गुणवतों में नाम को एकरूपता होते हुए भी क्रम में अन्तर है । श्वेताम्बर परम्परा में उपभोग-परिभोगवत का क्रम सातवाँ और अनर्थदण्ड विरमणव्रत का क्रम आठवाँ है, जबकि दिगम्बर परम्परा में अनर्थदण्ड सातवाँ और उपभोगपरिभोगवत आठवाँ है । दोनों परम्पराओं में महत्वपूर्ण अन्तर शिक्षाव्रतों के सम्बन्ध में है । श्वेताम्बर परम्परा में शिक्षाव्रतों का क्रम इस प्रकार से है-९. सामायिकवत, १०. देशावकाशिकव्रत, ११. पौषधव्रत, १२. अतिथिसंविभाग व्रत । दिगम्बर परम्परा का क्रम इस प्रकार है--९. सामायिकवत १०. पोषधव्रत, ११. अतिथिसंविभागवत, १२. संलेषणाव्रत । दिगम्बर परम्परा में देशावकाशिक और पोषधव्रत को एक में मिला लिया गया है तथा उस रिक्त संख्या की पूर्ति संलेषणा का व्रत में समावेश करके की गयी है । श्वेताम्बर आचार्य विमलसूरि ने पउम चरियं में कुन्दकुन्द के अनुरूप ही विवेचन किया है । तत्त्वार्थसूत्र की श्वेताम्बर-परंपरा के नामों से संगति है, मात्र क्रम का अन्तर है। उसमें श्वेताम्बर परम्परा के १० वें देशावकाशिकव्रत को दूसरा गुणव्रत मानकर ७वां स्थान दिया गया है तथा श्वेताम्बरपरम्परा के ७ वें उपभागपरिभोगव्रत को तीसरा शिक्षाव्रत मानकर ११ वां स्थान दिया गया है तथा श्वेताम्बर-परम्परा के ११ वें पौषधव्रत को दूसरा शिक्षाव्रत मानकर १०वाँ स्थान दिया गया है। दिगम्बर परम्परा में इस सम्बन्ध में और भी आंतरिक मतभेद है जिनका उल्लेख करना यहाँ आवश्यक प्रतीत नहीं होता, क्योंकि, इस सबके आधार पर नैतिक व्यवस्था के मौलिक स्वरूप में कोई अन्तर नहीं आता है ।
पाँच अणुवत १. अहिंसाणुव्रत
गृहस्थ का प्रथम व्रत अहिंसा-अणुव्रत है जिसमें गृहस्थ साधक स्थूल हिंसा से विरत १. तत्त्वार्थसूत्र ७।२। २. श्वेताम्बर परम्परा का आधार-१. उपासकदशांग, २. योगशास्त्र ३. प्रतिक्रमणसूत्र । ३. दिगम्बर परम्परा का आधार--१. चरित्रपाहुड-कुन्दकुन्द । ४. तत्वार्थसूत्र ७।१६ ।
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