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परम्परामें अहिंसा का विधायक पक्ष (२२०); हिंसा के अल्प-बहुत्व का विचार (२२१); अनाग्रह ( वैचारिक सहिष्णुता ) (२२३); जैनधर्म में अनाग्रह (२२३); बौद्ध आचार-दर्शन में वैचारिक अनाग्रह (२२६); गीता में अनाग्रह । २२७); वैचारिक सहिष्णुता का आधार-अनाग्रह (अनेकान्त दृष्टि)(२२८);धार्मिक सहिष्णुता (२२९); धर्म एक या अनेक(२२९);सम्प्रदाययेद-अनुचित कारण (२३०); उचित कारण (२३०); राजनैतिक सहिष्णुता (२३२); सामाजिक एवं पारिवारिक सहिष्णुता (२३३); अनाग्रह की अवधारणाके फलित (२३३); अनासक्ति ( अपरिग्रह ) (२३४); जैन धर्म में अनासक्ति (२३४); बौद्धधर्म में अनासक्ति (२३६ ; गीता में अनासक्ति (२३७); अनासक्ति के प्रश्न पर तुलनात्मक दृष्टि से विचार (२३८) ।
अध्याय : १४
सामाजिक धर्म एवं दायित्व
सामाजिक धर्म (२४२); ग्राम धर्म (२४२); नगर धर्म (२४२); राष्ट्र धर्म (२४३); पाखण्ड धर्म (२४३); कुल धर्म (२४४); गणधर्म (२४४); संघधर्म (२४४); श्रुत धर्म (२४५); चारित्र धर्म (२४५); अस्तिकाय धर्म (२४५); जैनधर्म और सामाजिक दायित्व (१०१); जैन मुनि के सामाजिक दायित्व (२४६); नीति और धर्म का प्रकाशन (२४६); धर्म की प्रभावना एवं संघ की प्रतिष्ठा की रक्षा (१०२); भिक्षु-भिक्षुणियों की सेवा एवं परिचर्या (२४६); भिक्षुणी संघ का रक्षण (२४७); संघ के आदेशों का परिपालन (२४७); गृहस्थ वर्ग के सामाजिक दायित्व (२४७); भिक्षु-भिक्षुणियों की सेवा (२४७); परिवार की सेवा (२४७); विवाह एवं सन्तान प्राप्ति (२४८); जैन धर्म में सामाजिक जीवन के निष्ठा सूत्र (२५०); जैन धर्म में सामाजिक जीवन के व्यवहार सूत्र (२५०); बौद्ध-परम्परा में सामाजिक धर्म (२५२); बौद्ध धर्म में सामाजिक दायित्व (२५३); पुत्र के माता-पिता के प्रति कर्तव्य (२५४); माता-पिता का पुत्र पर प्रत्युपकार (२५४); आचार्य (शिक्षक) के प्रति कतव्य (२५४); शिष्य के प्रति आचार्य का प्रत्युपकार (२५४); पत्नी के प्रति पति के कर्तव्य (२५४); पति के प्रति पत्नी का प्रत्युपकार (२५४); मित्र के प्रति कर्तव्य (२५४); मित्र का प्रत्युपकार (२५५); सेवक के प्रति स्वामी के कर्तव्य (२५५); सेवक का स्वामी के प्रति प्रत्युपकार (२५५); श्रमणब्राह्मणों के प्रति कर्तव्य (२५५); श्रमण-ब्राह्मणों का प्रत्युपकार (२५५); वैदिक परम्परा में सामाजिक धर्म (२५५) ।
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