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-२३गृहस्थधर्म
अध्याय : १५
जैन साधना में धर्म के दो रूप (२५७); जैन धर्म में गृहस्थ-साधना का स्थान (२५९); बौद्ध आचार दर्शन में गृहस्थ-जीवन का स्थान (२६०); गीता की दृष्टि में गृहस्थ धर्म का स्थान (२६१); श्रमण और गृहस्थ साधना में अन्तर (२६२); गृहस्थ धर्म की विवेचन शैली (२६४); गृहस्थ साधकों के दो प्रकार १. अविरत (अवती) सम्यग्दृष्टि, २. देशविरत (देशवती) सम्यग्दृष्टि (२६४); गृहस्थ उपासकों के तीन भेद १. पाक्षिक २. नैष्ठिक ३. साधक (२६५); गृहस्थधर्म में प्रविष्टि या सम्यक्त्व ग्रहण (२६५); सम्यक्त्व ग्रहण पर तुलनात्मक दृष्टि से विचार (२६६); देव, गुरु और धर्म का स्वरूप १. देव २. गुरु ३. धर्म (२६७); जैन साधना में गृहस्थ-आचार के प्राथमिक नियम (मूलगुण) (२६८); पंच औदुम्बर फल त्याग (२६८); सप्तव्यसन त्याग (२६८); गृहस्थ-जीवन की व्यावहारिक नीति (२६९); अणुव्रतसाधना (२७२); श्रावक की व्रत-विवेचना में श्वेताम्बर तथा दिगम्बर परम्पराओं का मतभेद (२७४); पाँच अणुव्रत (२७४); अहिंसा अणुव्रत (२७४); सत्य अणुव्रत (२७८); अचौर्य अणुव्रत (२८०); ब्रह्मचर्याणुव्रत (स्वदार सन्तोष व्रत) (२८१); परिग्रहपरिमाण व्रत (२८३); उसके पाँच अतिचार (२८४); तीन गुणवत (२८४); दिशा-परिमाण व्रत (२८४); उपभोग-परिभोग परिमाणवत (२८५); निषिद्ध व्यवसाय (२८७); बौद्ध परम्परा में निषिद्ध व्यवसाय (२८९); अनर्थदण्ड परित्याग (२८९); चार शिक्षा व्रत (२९१); सामायिक व्रत (२९१); देशावकाशिक व्रत (२९६); प्रोषधोपवास व्रत (२९७); बौद्ध विचारणा में उपोसथ (प्रोषध) (२९८); बौद्ध विचारणा में निर्ग्रन्थ उपोसथ की आलोचना और उसका उत्तर (२९८); अतिथि-संविभाग व्रत (३००); बौद्ध विचारणा में गृहस्थ धर्म (३०१) अष्टशील (३०३); पंच सामान्य-शील (१) अहिंसा शील (२) अचौर्यशील (३) ब्रह्मचर्य या स्वपत्नी सन्तोष (४) अमृषावाद शील (५) मद्यपान विरमण शील (३०३); तीन उपोसथ शील (१) विकाल भोजन परित्याग (२) माल्य गन्ध विरमण (३) उच्च शय्या विरमण (३०३); भिक्षु संघ संविभाग (३०३); निषिद्ध व्यापार परित्याग (३०४); तुलना (३०४); हिन्दू आचार दर्शन में गृहस्थ धर्म (३०६); गान्धी जी की व्रत व्यवस्था और जैन परम्परा (३०८); अहिंसा (३०९); सत्य (३१०); अस्तेय (३११); ब्रह्मचर्य (३११); अपरिग्रह (३११); शरीर श्रम (३१२); अस्वाद (३१२); अभय (३१३); सर्व
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