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अध्याय : ११
वर्णाश्रम-व्यवस्था १६१-१८६ वर्ण-व्यवस्था (१७६); जैनधर्म और वर्ण-व्यवस्था (१७६); बौद्ध आचार दर्शन में वर्ण-व्यवस्था (१७८); ब्रह्मज कहना झूठ है (१७९); वर्ण-परिवर्तन सम्भव है (१८०); सभी जाति समान हैं (१८०); आचरण ही श्रेष्ठ है (१८०); गीता तथा वर्ण-व्यवस्था (१८०); आश्रम-धर्म (१८४); जैन-परम्परा और आश्रम-सिद्धान्त (१८५); बौद्ध-परम्परा और आश्रम-सिद्धान्त (१८६) ।
अध्याय : १२ स्वधर्म की अवधारणा १८७-१९३
गोता में स्वधर्म (१८७); जैनधर्म में स्वधर्म (१८८); तुलना (१८९); स्वधर्म का आध्यात्मिक अर्थ (१९०); गीता का दृष्टिकोण (१९२); ब्रेडले का स्वस्थान और उसके कर्तव्य का सिद्धान्त तथा स्वधर्म (१९३) ।
अध्याय : १३ सामाजिक नैतिकता के केन्द्रीय तत्त्व १९४-२४१
__ अहिंसा, अनाग्रह और अपरिग्रह
अहिंसा (१९५), जैनधर्म में अहिंसा का स्थान (१९५); बौद्धधर्म में अहिंसा का स्थान (१९६); हिन्दू धर्म में अहिंसा का स्थान (१९७); अहिंसा का आधार (१९८); बौद्धधर्म में अहिंसा का आधार (२००); गीता में अहिंसा के आधार (२००); जैनागमों में अहिंसा की व्यापकता (२०१); अहिंसा क्या है ? (२०१); द्रव्य एवं भाव अहिंसा (२०२); हिंसा के प्रकार (२०२); मात्र शारीरिक हिंसा (२०२); मात्र वैचारिक हिंसा (२०२); वैचारिक एवं शारीरिक हिंसा (२०३); शाब्दिक हिंसा (२०२); हिंसा को विभिन्न स्थितियाँ (२०३); हिंसा के विभिन्न रूप (२०४); संकल्पजा (संकल्पीहिंसा) (२०४); विरोधजा (२०४); उद्योगजा (२०४); आरम्भजा (२०४); हिंसा के कारण (२०४); हिंसा के साधन (२०४); हिंसा और अहिंसा मनोदशा पर निर्भर (२०४); अहिंसा के बाह्य पक्ष की अवहेलना उचित नहीं ( २०६); पूर्ण अहिंसा के आदर्श की दिशा में (२०८); पूर्ण अहिंसा सामाजिक सन्दर्भ में (२१२); अहिंसा के सिद्धांत पर तुलनात्मक दृष्टि से विचार (२१३); यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म में अहिंसा का अर्थ विस्तार (२१५); भारतीय चिन्तन में अहिंसा का अर्थ विस्तार (२१५); अहिंसा का विधायक रूप (२१९); बौद्ध एवं वैदिक
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