________________
३२
जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन बौद्ध दर्शन की दो प्रमुख शाखाओं-विज्ञानवाद और शून्यवाद में भी शून्य, तथता या सत् के स्वरूप को समझाने के लिए दृष्टिकोणों की शैली का उपयोग हुआ है। माध्यमिककारिका में कहा गया है कि बुद्ध ने दो सत्यों का उपदेश दिया है(१) लोकसंवृति सत्य और (२) परमार्थ सत्य ।' चन्द्रकीर्ति ने लोकसंवृति सत्य के भी मिथ्यासंवृति और तथ्यसंवृति ये दो भेद किये हैं। इस प्रकार शून्यवाद में मिथ्यासंवृति, तथ्यसवृति और परमार्थ-तीन दृष्टिकोण माने गये हैं। विज्ञानवाद में भी तीन दृष्टिकोणों का प्रतिपादन है, जिन्हें क्रमशः (१) परिकल्पित, (२) परतन्त्र और (३) परिनिष्पन्न-कहा गया है। विज्ञानवाद का परतन्त्र जैन दर्शन के परोक्षज्ञान के निकट है। यहाँ उसे परतन्त्र इसलिए कहा गया है कि वह ज्ञान, मन और इन्द्रियों के अधीन होता है। ६ ४. वैदिक परम्परा में ज्ञान की विधाएँ
आचार्य शंकर ने अपने पूर्ववर्ती जैन और बौद्ध परम्पराओं की शैली का अनुसरण करते हुए तीन दृष्टिकोणों का प्रतिपादन किया है, जिन्हें वे क्रमशः (१) प्रतिभासिक सत्य, (२) व्यावहारिक सत्य, और (३) पारमार्थिक सत्य कहते हैं । २
तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर तो जैन परम्परा के निश्चयनय और व्यवहारनय, पर्यायार्थिकनय और द्रव्यार्थिकनय अथवा भूतार्थनय और अभूतार्थनय बौद्ध परम्परा के नीतार्थनय और नेय्यार्थनय के समान हैं। नीतार्थनय निश्चयनय, द्रव्याथिकनय या अभूतार्थनय के समान है, और नेय्यार्थनय व्यवहारनय, पर्यायाथिकनय या भूतार्थनय के समान है। जैन परम्परा के निश्चयनय को विज्ञानवादियों ने परिनिष्पन्न और शून्यवादियों ने परमार्थ कहा है, और व्यवहारनय को विज्ञानवादियों ने परतन्त्र और शून्यवादियों ने लोकसंवृति कहा है। जैन परम्परा का निश्चयनय शंकर का पारमार्थिक सत्य है और व्यवहारनय व्यावहारिक सत्य है । ५. पाश्चात्य परम्परा में ज्ञान की विधाएँ
न केवल भारतीय दर्शनों में, वरन् पाश्चात्य दर्शनों में भी प्रमुख रूप से व्यवहार और परमार्थ के दृष्टिकोण स्वीकृत किये जाते रहे हैं। डा० चन्द्रधर शर्मा लिखते हैं कि ( व्यवहार और परमार्थ दृष्टिकोणों का ) यह अन्तर सदैव ही रखा जाता रहा है। विश्व के सभी महान दार्शनिकों ने इसे किसी न किसी रूप में स्वीकार किया है । हेरा क्लिटस के Kato और Ane, पारमेनीडीज़ के मत ( Opinion )
और सत्य ( Truth ), सुकरात के रूप और आकार ( World and Form ), प्लेटो के संवेदना ( Sense ) और प्रत्यय ( Idea ), अरस्तू के पदार्थ ( Matter ) और चालक ( Mover ), स्पिनोजा के द्रव्य ( Substance ) और पर्याय,
१. माध्यमिककारिका, २४१८. २. देखिए-शंकर्स ब्रह्मवाद, पृ० १६६-१७१. ३. ए क्रिटिकल सर्वे आफ इण्डियन फिलासफी, पृ० ५९.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org