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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन ८. नैतिक चिन्तन की भारतीय एवं पाश्चात्य परम्पराओं में प्रमुख अन्तर
१. पाश्चात्य आचारदर्शन में नैतिकता का सम्बन्ध पारलौकिक जीवन की अपेक्षा वर्तमान जीवन से अधिक माना गया है जबकि भारतीय चिन्तन में पारलौकिक जीवन के सन्दर्भ में ही नैतिकता का विचार अधिक विकसित हुआ है। यद्यपि एकान्त रूप में न तो पाश्चात्य परम्परा को पूर्णतया लौकिक जीवन से और न भारतीय नैतिक चिन्तन को पूर्णतया पारलौकिक जीवन से ही सम्बन्धित माना जा सकता है।
२. भारतीय नैतिक चिन्तन, नैतिक सिद्धान्तों का विश्लेषणात्मक अध्ययन न होकर, व्यावहारिक नैतिक जीवन से सम्बन्धित है। भारतीय नैतिक विचारणा यह बताती है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, कौन-सा आचार उचित है और कौन-सा आचार अनुचित है। इस प्रकार भारतीय नैतिकता में मुख्यतया नैतिक सिद्धान्तों की अपेक्षा नैतिक जीवन पर अधिक विचार किया गया है । वह उपदेशात्मक है। उसका सम्बन्ध व्यावहारिक नैतिकता से अधिक है । दूसरे शब्दों में, पाश्चात्य आचारदर्शन आचार का विज्ञान है जबकि भारतीय आचारदर्शन जीने की कला है। यही कारण है कि भारतीय विचारकों ने आपात्कालीन एवं सामान्य आचार के नियमों का गहराई से विवेचन तो किया लेकिन नैतिकता के प्रतिमान एवं नैतिक प्रत्ययों की सैद्धान्तिक समीक्षा भारत में उतनी गहराई से नहीं हुई जितनी कि पश्चिम में। फिर भी यह मानना कि भारतीय नैतिक चिन्तन में केवल आचार-नियमों का प्रतिपादन है और नैतिक समस्याओं पर कोई चिन्तन नहीं हुआ है, एक भ्रान्त धारणा ही होगी। अनेक नैतिक समस्याओं का सुन्दर हल भारतीय चिन्तन ने दिया है, जो उसकी मौलिक प्रतिभा को अभिव्यक्त करता है।
३. भारतीय नैतिक चिन्तन प्रमुख रूप से अध्यात्मवादी है जबकि पाश्चात्य नैतिक चिन्तन में भौतिकवादी दृष्टिकोण का विकास अधिक देखा जाता है । भारतीय नैतिक चिन्तन में परमश्रेय निर्वाण, मोक्ष या आध्यात्मिक पूर्णता की प्राप्ति है, जबकि पाश्चात्य नैतिक चिन्तन में परमश्रेय व्यक्ति एवं समाज का भौतिक कल्याण है। वैयक्तिक या सामाजिक हितों की उपलब्धि एवं सुरक्षा तथा व्यवस्थित और सामंजस्यपूर्ण सामाजिक जीवन को ही अधिकांश पाश्चात्य विचारकों ने नैतिकता का साध्य माना है। यद्यपि हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि पश्चिम में भी ब्रडले प्रभृति कुछ आध्यात्मिक विचारकों ने नैतिक साध्य के रूप में जिस आत्मपूर्णता एवं आत्मसाक्षात्कार के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है, वह भारतीय आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक दूर नहीं है। इसी प्रकार, भारतीय चिन्तकों ने भी जीवन के भौतिक पक्ष की पूरी तरह से अवहेलना नहीं की है।
४. भारतीय और पाश्चात्य नैतिक चिन्तन में एक महत्त्वपूर्ण अन्तर यह भी है कि भारतीय आचारपरम्परा निर्वाणवादी होने के कारण व्यक्तिपरक रही, जबकि
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