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मनोवृत्तियाँ ( कषाय एवं लेश्याए)
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दृष्टिकोण से गुण-कर्म के आधार पर वर्गीकरण करने का प्रयास न केवल जैन, बौद्ध और गीता की परम्परा ने किया है, वरन् अन्य श्रमण परम्पराओं में भी ऐसे वर्गीकरण उपलब्ध होते हैं । दीघनिकाय में आजीवक सम्प्रदाय के आचार्य मंखलिपुत्र गोशालक एवं अंगुत्तरनिकाय में पूर्ण कश्यप के नाम के साथ इस वर्गीकरण का निर्देश है । इनकी मान्यता के अनुसार कृष्ण, नील, लोहित, हरिद्र, शुक्ल और परमशुक्ल ये छह अभिजातियाँ हैं । उक्त वर्गीकरण में कृष्ण अभिजाति में आजीवक सम्प्रदाय से इतर सम्प्रदायों के गृहस्थ को, नील अभिजाति में निर्ग्रन्थ और आजीवक श्रमणों के अतिरिक्त अन्य श्रमणों को, लोहित अभिजाति में निर्ग्रन्थ श्रमणों को, हरिद्र अभिजाति में आजीवक गृहस्थों को, शुक्ल अभिजाति में आजीवक श्रमणों को और परमशुक्ल अभिजाति में गोशालक आदि आजीवक सम्प्रदाय के प्रणेता वर्ग को रखा गया है ।
उपर्युक्त वर्गीकरण का जैन- विचारणा से बहुत कुछ शब्द साम्य है, लेकिन जैन- दृष्टि से यह वर्गीकरण इस अर्थ में भिन्न है कि एक तो यह केवल मानव जाति तक सीमित है, जबकि जैन-वर्गीकरण इसमें सम्पूर्ण प्राणी वर्ग का समावेश करता है । दूसरे, जैन दृष्टिकोण व्यक्तिपरक है, जो साम्प्रदायिकता से ऊपर उठकर यही कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति या व्यक्ति समूह अपने गुण-कर्म के आधार पर किसी भी वर्ग या अभिजाति में सम्मिलित हो जाता है । यहाँ यह विशेष दृष्टव्य है कि जहाँ गोशालक द्वारा दूसरे श्रमणों को नील अभिजाति में रखा गया, वहाँ निर्ग्रन्थों को लोहित अभिजाति में रखना उनके प्रति कुछ समादर भाव का द्योतक अवश्य है । सम्भव है महावीर एवं गोशालक का पूर्व - सम्बन्ध इसका कारण रहा हो । जहाँ तक भगवान् बुद्ध की तत्सम्बन्धी मान्यता का प्रश्न है, वे पूर्ण कश्यप अथवा गोशालक की मान्यता से अपने को सहमत नहीं करते हैं । वे व्यक्ति के नैतिक स्तर के आधार पर वर्गीकरण तो प्रस्तुत करते हैं, लेकिन अपने वर्गीकरण को जैन विचारणा के समान मात्र वस्तुनिष्ठ ही रखना चाहते हैं । वे भी यह नहीं बताते कि अमुक वर्ग या व्यक्ति इस वर्ग का है, वरन् यही कहते हैं कि जिसकी मनोभूमिका एवं आचरण जिस वर्ग के अनुसार होगा, वह उस वर्ग में आ जायेगा | पूर्ण कश्यप के दृष्टिकोण की समालोचना करते हुए भगवान् बुद्ध आनन्द से कहते हैं कि मैं अभिजातियों को तो मानता हूँ, लेकिन मेरा मन्तव्य दूसरों से पृथक्
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है । मनोदशा और आचरणपरक वर्गीकरण बौद्ध - विचारणा का प्रमुख मंतव्य था ।
बौद्ध-विचारणा में प्रथमतः प्रशस्त और अप्रशस्त मनोभाव तथा कर्म के आधार पर मानव जाति को कृष्ण और शुक्लवर्ग में रखा गया । जो क्रूर कर्मी हैं वे कृष्ण अभिजाति के हैं और जो शुभ कर्मी हैं वे शुक्ल अभिजाति के हैं । पुनः कृष्ण प्रकार वाले और शुक्ल प्रकार वाले मनुष्यों को गुण-कर्म के आधार पर
तीन-तीन भागों में
१. अंगुत्तरनिकाय, ६।५७
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