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________________ भनोवृत्तियां (कषाय एवं लेश्याएँ) ५१५ चोरी, व्यभिचार और संग्रह में लगा रहता है। स्वभाव से वह निर्दय एवं नृशंस होता है और हिंसक कर्म करने में उसे तनिक भी अरुचि नहीं होती तथा अपने स्वार्थ-साधन के निमित्त दूसरे का बड़ा से बड़ा अहित करने में वह संकोच नहीं करता ।' कृष्णलेश्या से युक्त प्राणी वासनाओं के अन्ध-प्रवाह से हो शासित होता है और इसलिए भावावेश में उसमें स्वयं के हिताहित का विचार करने की क्षमता भी नहीं होती। वह दूसरे का अहित मात्र इसलिए नहीं करता कि उससे उसका स्वयं का कोई हित होगा, वरन् वह तो अपने क्रूर स्वभाव के वशीभूत हो ऐसा किया करता है अपने हित के अभाव में भी वह दूसरे का अहित करता रहता है । __ नील-लेश्या (अशुभतर मनोभाव) से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण-यह नैतिक व्यक्तित्व का प्रकार पहले की अपेक्षा कुछ ठीक होता है, लेकिन होता अशुभ ही है । इस अवस्था में भी प्राणी का व्यवहार वासनात्मक पक्ष से शासित होता है। लेकिन वह अपनी वासनाओं की पूर्ति में अपनी बुद्धि का उपयोग करने लगता है । अतः इसका व्यवहार प्रकट रूप में तो कुछ प्रभाजित-सा रहता है, लेकिन उसके पीछे कुटिलता ही काम करती है। यह विरोधी का अहित अप्रत्यक्ष रूप से करता है। ऐसा प्राणी ईल, असहिष्णु, असंयमी, अज्ञानी, कपटी, निर्लज्ज, लम्पट, दुष-बुद्धि से युक्त, रसलोलुप एवं प्रमादी होता है। फिर भी वह अपनी सुख-सुविधा का सदैव ध्यान रखता है । यह दूसरे का अहित अपने हित के निमित्त करता है, यद्यपि यह अपने अल्प हित के लिए दूसरे का बडा अहित भी कर देता है। जिन प्राणियों से इसका स्वार्थ सघता है उन प्राणियों के हित का अज-पोषण-न्याय के अनुसार वह कुछ ध्यान अवश्य रखता है, लेकिन मनोवृत्ति दूषित ही होती है। जैसे, बकरा पालने वाला बकरे को इसलिए नहीं खिलाता कि उससे बकरे का हित होगा, वरन् इसलिए खिलाता है कि उसे मारने पर अधिक मांस मिलेगा। ऐसा व्यक्ति दूसरे का बाह्य रूप में जो भी हित करता सा दिखाई देता है, उसके पीछे उसका गहन स्वार्थ छिपा रहता है। ३. कापोत-लेश्या (अशुभ मनोवृति) से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण—यह मनोवृत्ति भी दूषित है । इस मनोवृत्ति में प्राणी का व्यवहार मन, वचन, कर्म से एक रूप नहीं होता। उसकी करनी और कथनी भिन्न होती है। मनोभावों में सरलता नहीं होती, कपट और अहंकार होता है। वह अपने दोषों को सदैव छिपाने की कोशिश करता है। उसका दृष्टिकोण अयथार्थ एवं व्यवहार अनार्य होता है। वह वचन से दूसरे की गुप्त बातों को प्रकट करनेवाला अथवा दूसरे के रहस्यों को प्रकट कर उससे अपना हित साधने वाला, दूसरे के धन का अपहरण करने वाला एवं मात्सर्य भावों से युक्त होता है। ऐसा व्यक्ति दूसरे का अहित तभी करता है, जब उससे उसकी स्वार्थ-सिद्धि होती है। १. उत्तराध्ययन, ३४।२१-२२ २. वही, ३४।२३-२४ ३. वही, ३४।२५-२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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