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मनोवृत्तियाँ ( कषाय एवं लेश्याएं )
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कारण पित्त का निर्माण बहुल रूप में होता है, उसी प्रकार इन सूक्ष्म भौतिक तत्त्वों से मनोभाव बनते हैं और मनोभाव के होने पर इन सूक्ष्म संरचनाओं का निर्माण होता है । इनके स्वरूप के सम्बन्ध में पं० सुखलाल जी एवं राजेन्द्रसूरिजी ने निम्न तीन मतों को उद्धृत किया है :
१. लेश्या द्रव्य कर्म-वर्गणा से बने हुए हैं । यह मत उत्तराध्ययन की टीका में है । २. लेश्या-द्रव्य बध्यमान कर्म प्रवाह रूप है । यह मत भी उत्तराध्ययन की टीका में वादिवताल शान्तिसूरि का है ।
३. लेश्या-योग परिणाम है अर्थात् शारीरिक, वाचिक और मानसिक क्रियाओं का परिणाम है । यह मत आचार्य हरिभद्र का है । "
भाव- लेश्या – भाव - लेश्या आत्मा का अध्यवसाय या अन्तःकरण की वृत्ति है । पं० सुखलालजी के शब्दों में भाव-लेश्या आत्मा का मनोभाव विशेष है, जो संक्लेश और योग से अनुगत है । संक्लेश के तीव्र, तीव्रतर तीव्रतम, मन्द मन्दतर, मन्दतम आदि अनेक भेद होने से लेश्या ( मनोभाव) वस्तुतः अनेक प्रकार की है । तथापि संक्षेप में छह भेद करके (जैन) शास्त्र में उसका स्वरूप वर्णन किया गया है ।
उत्तराध्ययन सूत्रों में लेश्याओं के स्वरूप का निर्वचन विविध पक्षों के आधार पर विस्तृत रूप से हुआ है, लेकिन हम अपने विवेचन को लेश्याओं के भावात्मक पक्ष तक ही सीमित रखना उचित समझेंगे । मनोदशाओं में संक्लेश की न्यूनाधिकता अथवा मनोभावों की अशुभत्व से शुभत्व की ओर बढ़ने की स्थितियों के आधार पर ही उनके विभाग किये गये हैं । अप्रशस्त और प्रशस्त इन द्विविध मनोभावों के उनकी तारतम्यता के आधार पर छह भेद वर्णित हैं ।
अप्रशस्त मनोभाव
१. कृष्ण - लेश्या - तीव्रतम अप्रशस्त मनोभाव
२. नील - लेश्या - ती अप्रशस्त
मनोभाव
-- अप्रशस्त मनोभाव
३. कापोत- लेश्या --
प्रशस्त मनोभाव
४. तेजोलेश्या - प्रशस्त मनोभाव
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५.
पद्मलेश्या - तीव्र प्रशस्त मनोभाव
६. शुक्ललेश्या - तीव्रतम प्रशस्त मनोभाव
लेश्याएं एवं नैतिक व्यक्तित्व का भणी- विभाजन — लेश्याएँ मनोभावों का वर्गीकरण मात्र नहीं हैं, वरन् ये चरित्र के आधार पर किये गये व्यक्तित्व के प्रकार भी हैं । १. अदर्शन और चिन्तन, भाग २, पृ० २९७ ( ब ) अभिधान राजेन्द्र खण्ड ६, पृ० ६७५ २. उत्तराध्ययन, ३४३
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