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________________ ५१२ जेन, बोद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन होगी । व्यक्ति जितना आवेगों से ऊपर उठेगा, उसके व्यक्तित्व में स्थिरता एवं परिपक्वता आती जायेगी । इसी प्रकार व्यक्ति में अनैतिक आवेगों (कषायों) की जितनी अधिकता होगी, नैतिक दृष्टि से उसका व्यक्तित्व उतना ही निम्नस्तरीय होगा । आवेगों ( मनोवृत्तियों) की तीव्रता और उनकी अशुभता दोनों ही व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं। वस्तुतः आवेगों में जितनी अधिक तीव्रता होगी, उतनी व्यक्तित्व में अस्थिरता होगी और व्यक्तित्व में जितनी अधिक अस्थिरता होगी उतनी ही अनैतिकता होगी। आवेगात्मक अस्थिरता अनैतिकता की जननी है । इस प्रकार आवेगात्मकता, नैतिकता और व्यक्तित्व तीनों ही एक- दूसरे से जुड़े हैं । यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि व्यक्ति के सन्दर्भ में न केवल आवेगों की तीव्रता पर विचार करना चाहिए, वरन् उनकी प्रशस्तता और अप्रशस्तता पर भी विचार करना आवश्यक है । प्राचीन काल से ही व्यक्ति के आवेगों तथा मनोभावों के शुभत्व एवं अशुभत्व का सम्बन्ध हमारे व्यक्तित्व से जोड़ा गया है । आचारदर्शन में व्यक्तित्व के वर्गीकरण या श्रेणी विभाजन का आधार व्यक्ति की प्रशस्त और अप्रशस्त मनोवृत्तियाँ ही हैं । जिस व्यक्ति में जिस प्रकार की मनोवृत्तियाँ होती हैं, उसी आधार पर उसके व्यक्तित्व का वर्गीकरण किया जाता है । मनोवृत्तियों के नैतिक आधारों पर व्यक्तित्व के वर्गीकरण की परम्परा बहुत पुरानी है । जैन, बौद्ध और गीता के आचार- दर्शनों में ऐसा वर्गीकरण या श्रेणी विभाजन उपलब्ध है। जैन दर्शन में इस वर्गीकरण का आधार लेश्या - सिद्धान्त है । बौद्ध दर्शन में लेश्या का स्थान अभिजाति ने लिया है, जबकि गीता में इसे देवी एवं आसुरी सम्पदा के रूप में वर्णित किया गया है। आगे हम नैतिक व्यक्तित्व के सम्बन्ध में इसी लेश्या - सिद्धान्त की चर्चा करेंगें । नैतिक व्यक्तित्व की चर्चा करते समय हमें कषाय- सिद्धान्त के स्थान पर लेश्या - सिद्धान्त की ओर आना होता है । कषाय-सिद्धान्त केवल अशुभ आवेगों की तीव्रता के आधार पर चर्चा करता है, जबकि लेश्या - सिद्धान्त में शुभ एवं अशुभ दोनों प्रकार के मनोभावों को चर्चा आती है । लेश्या - सिद्धान्त और नैतिक व्यक्तित्व जैन- विचारकों के अनुसार लेश्या की परिभाषा यह है कि जो आत्मा को कर्मों से लिप्त करती है, जिसके द्वारा आत्मा कर्मों से लिप्त होती है या बन्धन में आती है, वह लेश्या है ।" जैनागमों में लेश्या दो प्रकार की मानी गयी है -- १. द्रव्य लेश्या और २. भाव - लेश्या । १. द्रव्य - लेश्या - द्रव्य - लेश्या सूक्ष्म भौतिकी तत्त्वों से निर्मित वह आगिक संरचना है, जो हमारे मनोभावों एवं तज्जनित कर्मों का सापेक्ष रूप में कारण अथवा कार्य बनती है । जिस प्रकार पित्तद्रव्य की विशेषता से स्वभाव में क्रोधीपन आता है और क्रोध के १. अभिधान राजेन्द्र खण्ड ६, पृ० ६७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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