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मनोवृत्तियां (कषाय एवं लेश्याएं) ४. अकस्मात् भय-बाह्य-निमित्त के अभाव में स्वकीय कल्पना से निर्मित भय या अकारण भय । भय का यह रूप मानसिक ही होता है, जिसे मनोविज्ञान में असामान्य भय कहते हैं । ५. आजीविका भय-आजीविका या धनोपार्जन के साधनों की समाप्ति (विच्छेद) का भय । कुछ ग्रन्थों में इसके स्थान पर वेदना-भय का उल्लेख है । रोग या पीड़ा का भय वेदना भय है। ६. मरण भय-मृत्यु का भय ; जैन और बौद्ध विचारणा में मरण-धर्मता का स्मरण तो नैतिक दृष्टि से आवश्यक है, लेकिन मरण भय (मरणाशा एवं जीविताशा) को नैतिक दृष्टि से अनुचित माना गया है । ७. अश्लोक (अपयश) भय-मान-प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचने का भय ।'
७. स्त्रीवेद-स्त्रीत्व संबंधी काम-वासना अर्थात् पुरुष से संभोग की इच्छा। जैनविचारणा में लिंग और वेद में अन्तर किया गया है । लिंग आंगिक संरचना का प्रतीक है, जबकि वेद तत्सम्बन्धी वासनाओं की अवस्था है। यह आवश्यक नहीं है कि स्त्री-लिंग होने पर स्त्रीवेद हो ही। जैन-विचारणा के अनुसार लिंग (आंगिक रचना) का कारण नाम-कर्म है, जबकि वेद (वासना) का कारण चारित्रमोहनीय कर्म है।
८. पुरुषवेद-पुरुषत्व सम्बन्धी काम वासना अर्थात् स्त्री-संभोग की इच्छा ।
९. नपुंसकवेद-प्राणी में स्त्रीत्व सम्बन्धी और पुरुषत्व सम्बन्धी दोनों वासनाओं का होना नपुंसकवेद कहा जाता है । दोनों के संभोग की इच्छा ही नपुंसकवेद है।
काम-वासना की तीव्रता की दृष्टि से जैन-विचारकों के अनुसार पुरुष की कामवासना शीघ्र ही प्रदीप्त हो जाती है और शीघ्र ही शान्त हो जाती है। स्त्री की कामवासना देरी से प्रदीप्त होती है लेकिन एक बार प्रदीप्त हो जाने पर काफी समय तक शान्त नहीं होती। नपुंसक की काम-वासना शीघ्र प्रदीप्त हो जाती है, लेकिन शान्त देरी से होती है। इस प्रकार भय, शोक, घृणा, हास्य, रति, अरति, और कामविकार ये उप-आवेग हैं। ये भी व्यक्ति के जीवन को बहुत प्रभावित करते हैं। क्रोध आदि की शक्ति तीव्र होती है, इसलिए वे आवेग हैं । ये व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थिति को प्रभावित करने के अतिरिक्त उसके आन्तरिक गुणों-सम्यक् दृष्टिकोण, आत्म-नियन्त्रण आदि को भी प्रभावित करते हैं। भय आदि उप-आवेग व्यक्ति के आन्तरिक गुणों को उतना प्रत्यक्षतः प्रभावित नहीं करते, जितना शारीरिक और मानसिक स्थिति को करते हैं। उनकी शक्ति अपेक्षाकृत क्षीण होती है, इसलिए वे उप-आवेग कहलाते हैं ।
कषाय-जय नैतिक प्रगति का आधार--जैन आचार-दर्शन के अनुसार उक्त १६ आवेगों (कषाय) और ९ उप आवेगों (नो-कषाय) का सीधा सम्बन्ध व्यक्ति के चरित्र से है । नैतिक जीवन के लिए इन वासनाओं एवं आवेगों से ऊपर उठना आवश्यक है । १. श्रमण आवश्यक सूत्र-भयसूत्र २. जैन साइकोलाजी, पृ० १३१-१३४ ३. तुम अनन्त शक्ति के स्रोत हो, पृ० ४७ .
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