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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
तथापि आवेगों की तीव्रता की दृष्टि से नोकषाय कम तीव्र होते हैं, और कषायें अधिक तीव्र होती हैं । इन्हें कषाय कारक भी कहा जा सकता है । जैन ग्रन्थों में इनकी संख्या ९ मानी गई है -
१. हास्य- सुख या प्रसन्नता की अभिव्यक्ति हास्य है । जैन विचारणा के अनुसार हास्य का कारण पूर्व कर्म या वासना - संस्कार है ।
२. शोक - इष्टवियोग और अनिष्टयोग से सामान्य व्यक्ति में जो मनोभाव जागृत होते हैं, वे शोक कहे जाते हैं ।" शोक चित्तवृत्ति की विकलता का द्योतक है और इस प्रकार मानसिक समत्व का भंग करनेवाला है ।
३. रति ( रुचि ) - अभीष्ट पदार्थों पर प्रीतिभाव अथवा इन्द्रिय-विषयों में चित्त की अभिरतता ही रति है । इसके कारण ही आसक्ति एवं लोभ की भावनाएँ प्रबल होती हैं । 3
४. अरति --- इंन्द्रिय-विषयों में अरुचि हो अरति है । अरुचि का भाव हो विकसित होकर घृणा और द्वेष बनता है । राग और द्वेष तथा रुचि और अरुचि में प्रमुख अन्तर यही है कि राग और द्वेष मनस् की सक्रिय अवस्थाएँ हैं जबकि रुचि और अरुचि निष्क्रिय अवस्थाएँ हैं । रति और अरति पूर्व कर्म-संस्कारजनित स्वाभाविक रुचि और अरुचि का भाव है ।
५. घृणा घृणा या जुगुप्सा अरुचि का ही में केवल मात्रात्मक अन्तर ही है । अरुचि की अरुचि में पदार्थ - विशेष के भोग को अरुचि होती है, हैं, जबकि घृणा में उसका भोग और उसकी उपस्थिति दोनों ही अरुचि का विकसित रूप घृणा और घृणा का विकसित रूप द्वेष है ।
६. भय - किसी वास्तविक या काल्पनिक तथ्य से आत्मरक्षा के निमित्त बच निकलने की प्रवृत्ति ही भय है । भय और घृणा में प्रमुख अन्तर यह है कि घृणा के मूल में द्वेष-भाव रहता है, जबकि भय में आत्म-रक्षण का भाव प्रबल होता है । घृणा क्रोध और द्वेष का एक रूप है जबकि भय लोभ या राग की ही एक अवस्था है । जैनागमों में भय सात प्रकार का माना गया है । जैसे - १. इहलोक भय -- यहाँ लोक शब्द संसार के अर्थ न होकर जाति के अर्थ में भी ग्रहीत है । स्वजाति के प्राणियों से अर्थात् मनुष्यों के लिए मनुष्यों से उत्पन्न होने वाला भय, २. परलोक भय - अन्य जाति के प्राणियों से होने वाला भय, जैसे मनुष्यों के लिए पशुओं का भय, ३ आदान भय-धन की रक्षा के निमित्त चोर डाकू आदि भय के बाह्य कारणों से उत्पन्न भय,
१. अभिधान राजेन्द्र कोश, खण्ड ७, पृ० ११५७ २. वही, खण्ड ६, पृ० ४६७
विकसित रूप है । अरुचि और घृणा अपेक्षा घृणा में विशेषता यह है कि लेकिन उसकी उपस्थिति सह्य होती
असह्य होती है ।
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