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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
नीतिशास्त्र को विज्ञान माननेवाले विचारकों में इस आधार पर मतभेद है कि नीतिशास्त्र तथ्यात्मक विज्ञान है या आदर्शात्मक विज्ञान ? जो विचारक नीतिशास्त्र को समाज विज्ञान या मनोविज्ञान का ही एक अंग समझते हैं उनके अनुसार नीतिशास्त्र भी अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान या विधिशास्त्र के समान एक तथ्यात्मक विज्ञान है, जबकि दूसरे कुछ विचारक उसे आदर्शात्मक विज्ञान मानते हैं जिनके अनुसार नीतिशास्त्र का कार्य तथ्यों की व्याख्या करना नहीं, वरन् आदर्श का निर्देशन है। नीतिशास्त्र का सम्बन्ध 'है' से नहीं, वरन् ‘चाहिए' से है । वह यह बताता है कि 'क्या करना चाहिए' और 'क्या नहीं करना चाहिए'। नीतिशास्त्र के निर्णय तथ्यात्मक नहीं, वरन् मूल्यात्मक होते हैं और इस रूप में वह आदर्शमूलक विज्ञान ही सिद्ध होता है। १. क्या नीतिशास्त्र कला है ?
विज्ञान और कला में प्रमुख अन्तर इस आधार पर किया जाता है कि विज्ञान का सम्बन्ध 'ज्ञान' या विचार से, और कला का सम्बन्ध कर्म या कृति से होता है । भारतीय परम्परा में शुक्राचार्य ने विद्या ( विज्ञान ) और कला में प्रमुख अन्तर इस आधार पर माना है कि जो विचारविनिमय का विषय है वह विद्या है,
और जो क्रिया का विषय है वह कला है। कुछ विचारकों की दृष्टि में नीतिशास्त्र आचरण की कला है। जिस प्रकार रेखाओं, बिन्दुओं और रंगों का सुन्दर विन्यास चित्रकला है, स्वरों की सुव्यवस्था गायनकला है; उसी प्रकार मनोभावों एवं आचरण का सुन्दर अभियोजन, सन्तुलन और सुव्यवस्थापन आचरण की कला है । कला रचनात्मक होती है लेकिन, इसका अर्थ यह नहीं है कि उसका विवेचनात्मक पक्ष से कोई सम्बन्ध नहीं है। विद्या या विज्ञान विवेचनात्मक होता है, लेकिन अनेक विज्ञान ऐसे भी हैं जो अपने निर्णयों की क्रियान्विति के अभाव में अपूर्ण रहते हैं; जैसे, शिल्पविज्ञान या चिकित्सा विज्ञान । आचारशास्त्र का सम्बन्ध जहाँ एक ओर कर्तव्य, श्रेय या परमार्थ के विवेचन से है, वहीं दूसरी ओर क्रियान्विति से भी है।
नीतिशास्त्र एक आदर्शात्मक विज्ञान है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि उसमें कलात्मक पक्ष का अभाव है। यद्यपि मैकेंजी प्रभृति कुछ पाश्चात्य नीतिवेत्ताओं ने नीतिशास्त्र को कला मानने से इनकार किया है। मैकेंजी अपने नीतिप्रवेशिका नामक ग्रन्थ में बताते हैं, "आचरण की कला हो ही नहीं सकती।" वे अपने पक्ष के समर्थन में दो तर्क देते हैं (१) आचरण आदत है न कि क्षमता, जबकि कला नैपुण्यक्षमता है। सदाचारी व्यक्ति वह है जो सदाचरण करता है, जबकि अच्छा कलाकार वह है जो अच्छा चित्र बना सकता है। सदाचरण के अभाव में एक व्यक्ति सदाचारी नहीं रहता है, अथवा सदाचरण करने की क्षमता-मात्र से कोई सदाचारी नहीं हो
१. शुक्रनीति, ४१६५.
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