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________________ ११ भारतीय आचारदर्शन का स्वरूप इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतीय परम्परा में भी धर्म को अनेक रूपों में विवेचित किया गया है। फिर भी भारतीय परम्परा की यह विशेषता है कि उसमें धर्म की किसी एकांगी परिभाषा पर ही बल नहीं दिया गया, वरन् धर्म अथवा नीति के विविध पक्षों को उभारते हुए उनमें एक समन्वय ही खोजने का प्रयास किया गया है। मनु ने धर्म के लक्षणों की व्याख्या करते हुए इन सभी पक्षों को समन्वित करने का प्रयास किया है। वे कहते हैं कि वेद एवं स्मृति की आज्ञाओं का परिपालन, सदाचार और आत्मवत् व्यवहार धर्म का लक्षण है। वस्तुतः जहाँ पाश्चात्य परम्परा में इन विविध परिभाषाओं का आग्रह देखा जाता है वहाँ भारतीय परम्पराओं में ऐसा आग्रह नहीं है, वरन् वे इन सभी पक्षों को समान रूप से स्वीकार करती हैं । यही कारण है कि प्रत्येक परम्परा में धर्म की विविध व्याख्याएं उपलब्ध हो जाती हैं। जैन परम्परा में भी धर्म की इन विविध परिभाषाओं को स्वीकार किया गया है धम्मो वत्थु सहावो, खमादिभावो य दसविहो धम्मो। रयणत्तयं च धम्मो, जीवाणं रक्खणं धम्मो ।। --कार्तिकेयानुप्रेक्षा, ४७८ अर्थात् वस्तुस्वभाव धर्म है, क्षमादि दश विध धर्म है, रत्नत्रय धर्म है और जीवों की रक्षा करना धर्म है । यह धर्म या नैतिकता की व्यापक परिभाषा है । नीतिशास्त्र के सन्दर्भ में इन परिभाषाओं की व्याख्या इस प्रकार होगी--स्वस्वभाव परमश्रेय के रूप में नैतिक साध्य है और रत्नत्रयरूप सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र उस परमश्रेयरूप साध्य के साधन हैं। स्वभावदशा की उपलब्धि पारमार्थिक नैतिकता है और सम्यग्दर्शन आदि व्यावहारिक नैतिकता है । पुनः क्षमादि दश विध धर्मों को वैयक्तिक नैतिकता और दया, करुणा आदि को सामाजिक नैतिकता कहा जा सकता है । ६५. भारतीय परम्परा में आचारदर्शन ( नीतिशास्त्र ) की प्रकृति पाश्चात्य परम्परा में यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण माना जाता रहा है कि नीतिशास्त्र की प्रकृति क्या है ? वह विज्ञान है या कला ? अथवा दर्शन का एक अंग है ? . विज्ञान का व्यापक अर्थ किसी भी विषय का सुव्यवस्थित अध्ययन है और इस अर्थ को स्वीकार करने पर नीतिशास्त्र भी विज्ञान है, क्योंकि वह कर्तव्य, श्रेय या परमार्थ का सुव्यवस्थित अध्ययन करता है । म्युरहेड के अनुसार विज्ञान के तीन लक्षण हैं—सम्यक् निरीक्षण, निरीक्षित तथ्यों का वर्गीकरण और उन तथ्यों की व्याख्या । इन लक्षणों के आधार पर भी नीतिशास्त्र विज्ञान है क्योंकि वह नैतिक तथ्यों का निरीक्षण, वर्गीकरण और उनकी व्याख्या करता है। १. मनुस्मृति, २।१२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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