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जन आचारदर्शन का मनोवैज्ञानिक पक्ष
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जंन-दर्शन में इन्द्रिय-स्वरूप – जैन दर्शन में उक्त पाँचों इन्द्रियाँ दो प्रकार की हैं - १. द्रव्येन्द्रिय २. भावेन्द्रिय । इन्द्रियों का बाह्य संरचनात्मक पक्ष (Structural aspect) द्रव्येन्द्रिय है और उनका आन्तरिक क्रियात्मक पक्ष (Functioual aspect) भावेन्द्रिय है । इनमें से प्रत्येक के पुनः उपविभाग किये गये हैं, जैसाकि निम्न सारणी से स्पष्ट :
द्रव्येन्द्रिय
उपकरण
(इन्द्रिय-रक्षक अंग )
T T अंतरंग बहिरंग
इन्द्रिय
T
निवृत्ति लब्धि (शक्ति) ( इन्द्रिय- अंग )
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अंतरंग
बहिरंग
जैन-दर्शन में इन्द्रियों के विषय - (१) श्रोत्रेन्द्रिय का विषय शब्द है । शब्द तीन प्रकार का माना गया है । जीव-शब्द, अजीव शब्द और मिश्र - शब्द । कुछ विचारक ७ प्रकार के शब्द भी मानते हैं । (२) चक्षु इन्द्रिय का विषय रूप संवेदना है । रूप पाँच प्रकार का है -- काला, नीला, पीला, लाल और श्वेत । शेष रंग इन्हीं के सम्मिश्रण के परिणाम हैं । ( ३ ) घ्राणेन्द्रिय का विषय गन्ध-संवेदना है गन्ध दो प्रकार की है-१. सुगन्ध और २. दुर्गन्ध । ( ४ ) रसना का विषय रसास्वादन है । रस पाँच हैं-अम्ल, लवण, तिक्त और मधुर । (५) स्पर्शन् - इन्द्रिय का विषय स्पर्शानुभूति है । स्पर्श आठ प्रकार का है--उष्ण, शीत, रुक्ष, चिकना, हल्का, भारी, कर्कश, कोमल । इस प्रकार श्रोत्रेन्द्रिय के ३, चक्षुरेन्द्रिय के ५, घ्राणेन्द्रिय के २, रसना के ५ और स्पर्शेन्द्रिय के ८, कुल मिलाकर पांचों इन्द्रियों के तेईस विषय हैं ।
कटु
भावेन्द्रिय
उपयोग (चेतना)
सामान्य रूप से इन्हीं पाँचों इन्द्रियों के द्वारा जीवात्मा इन विषयों का सेवन करता है। गीता में भी कहा गया है कि यह जीवात्मा श्रोत्र, चक्षु, त्वचा, रसना, घ्राण और मन के आश्रय से ही विषयों का सेवन करता है । इन्द्रियाँ अपने विषयों से किस प्रकार सम्बन्ध स्थापित करती है और जीवात्मा को उन विषयों से कैसे प्रभावित करती है, इसका विस्तृत विवरण प्रज्ञापनासूत्र और अन्य जैन ग्रन्थों में मिलता है । यहाँ इतना ही जान लेना पर्याप्त है कि द्रव्य इन्द्रिय का विषय से सम्पर्क होकर वह भाव - इन्द्रिय को प्रभावित करती है और भाव- इन्द्रिय जीवात्मा की शक्ति होने के
१. गीता, १५।९
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