SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 515
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६८ जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारवर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन निष्कर्ष-इस प्रकार वासना, काम या तष्णा से राग-द्वेष के प्रत्यय निर्मित होते हैं। राग और द्वष वासना या तृष्णा की ही आकर्षणात्मक और विकर्षणात्मक शक्तियाँ हैं । गीताकार का स्पष्ट मत है कि काम से ही क्रोध उत्पन्न होता है । तृष्णा की इन आकर्षणात्मक और विकर्षणात्मक शक्तियों को जैन-दर्शन में राग और द्वेष कहा गया है । बौद्ध-दर्शन में राग और द्वष के साथ-साथ इनके लिए अधिक समुचित पर्याय है-भवतृष्णा और विभवतृष्णा । आधुनिक मनोविज्ञान में फ्रायड ने इन्हें ही जीवनवृत्ति (Eros) • और मृत्युवृत्ति (Thenatos) कहा है, कर्टलेविन ने इन्हें आकर्षण-शक्ति (Positive valence) और विकर्षण-शक्ति (Negative valence) कहा है । इस प्रकार इन्द्रियों का विषयों से सम्बन्ध होने पर संस्कारों के कारण मन में विषयों के प्रति अनुकूल या प्रतिकूल भाव बनते हैं, जिनसे राग-द्वेष का जन्म होता है और वे प्राणी के समग्र क्रिया-कलापों का नियमन करने लगते हैं। यहां यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कामना, संकल्प या राग-द्वेष की प्रवृत्तियों की उत्पत्ति के मूलभूत आधार हमारी इन्द्रियाँ और मन हैं, अतः उनके सम्बन्ध में भी थोड़ा विचार कर लेना उपयुक्त होगा। 'इन्द्रिय' शब्द का अर्थ-'इन्द्रिय' शब्द के अर्थ की विशद् विवेचना न करते हुए यहाँ हम केवल यही कहेंगे कि जिन-जिन साधनों की सहायता से जीवात्मा विषयों की ओर अभिमुख होता है अथवा विषयों के उपभोग में समर्थ होता है, वे इन्द्रियाँ हैं। इस अर्थ को लेकर जैन, बौद्ध और गीता की विचारणा में कहीं कोई विवाद नहीं पाया जाता। - इन्द्रियों को संख्या-(अ) जैन दृष्टिकोण-जैन-दर्शन में इन्द्रियाँ पाँच मानी गयी हैं । १. श्रोत्र, २. चक्षु, ३. घ्राण, ४. रसना और ५. स्पर्शन (त्वचा)। जैन-दर्शन में मन को नोइन्द्रिय (Quasi sense organ) कहा गया है। जैन-दर्शन में कर्मेन्द्रियों का विचार उपलब्ध नहीं है, फिर भी पाँच कर्मेन्द्रियाँ उसकी १० बल की धारणा में से वाक्बल, शरीरबल एवं श्वासोच्छास-बल में समाविष्ट हो जाती हैं। (ब) बौद्ध दृष्टिकोण-बौद्ध ग्रन्थ विसुद्धिमग्ग में इन्द्रियों की संख्या २२ वणित है । बौद्ध-विचारधारा उक्त पांच इन्द्रियों एवं मन के अतिरिक्त पुरुषत्व, स्त्रीत्व, सुखदुःख तथा शुभ एवं अशुभ मनोभावों को भी इन्द्रियों में मान लेती है । (ए) गोता का दृष्टिकोण-गीता में भी जैन दर्शन के समान पाँच इन्द्रियों एवं छठे मन को स्वीकार किया गया है। शांकर-वेदान्त एवं सांख्य-दर्शन में इन्द्रियों की संख्या ११ मानी गई है । ५ ज्ञानेन्द्रियाँ, ५ कर्मेन्द्रियाँ और १ अन्तःकरण । १. अभिधान राजेन्द्र कोश, खण्ड २, पृ० ५४७ २. दर्शन और चिन्तन, भाग १, पृ० १३४-३५ ३. विसुद्धिमग्ग, भाग २, पृ० १०३-१२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy