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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
रुचि रखते हैं।' मूर का कहना है कि कर्तव्यमीमांसा समग्र नैतिक गवेषणाओं का लक्ष्य है।
नैतिक आचरण के लिए जहाँ यह आवश्यक है कि व्यक्ति यह जाने कि क्या शुभ है और क्या अशुभ; वहीं यह भी अपेक्षित है कि वह क्यों शुभ है और क्यों अशुभ, इसका भी उसे समुचित ज्ञान हो। यह बात नैतिकता के सैद्धान्तिक अध्ययन से ही सम्भव है। साथ ही नैतिक आचरण का मार्ग भी इतना निरापद नहीं है । कभी-कभी व्यक्ति ऐसी द्विविधा की स्थिति में फंस जाता है कि सामान्यतः उचित और अनुचित का निर्णय करना कठिन हो जाता है। गीता में कहा गया है कि कर्म की शुभाशुभता का निर्णय करना अत्यन्त गहन विषय है । 3 व्यक्ति के जीवन में ऐसे अनेक अवसर उपस्थित हो जाते हैं जहाँ उसे दूसरे व्यक्तियों के आचरण के सम्बन्ध में शुभाशुभता का निर्णय लेना होता है, किन्तु ऐसा निर्णय नैतिकता के सैद्धान्तिक अध्ययन के आधार पर ही अधिक अच्छे ढंग से लिया जा सकता है। जब कर्तव्य एवं अकर्तव्य के मध्य द्विविधा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तब नैतिकता का सैद्धान्तिक अध्ययन ही हमारा मार्गदर्शक बन सकता है। इस सब के अतिरिक्त विभिन्न आचारदर्शनों की देश-कालगत विशेषताएँ एवं विभिन्नताएँ स्वयं . हमें नैतिक सिद्धान्तों के अध्ययन के लिए आकर्षित करती हैं । ४. आचारदर्शन की परिभाषा
आचारदर्शन या नीतिशास्त्र को अनेक प्रकार से परिभाषित किया गया है । पाश्चात्य परम्परा में आचारदर्शन की परिभाषाएँ अनेक दृष्टिकोणों के आधार पर की गयी हैं। किसी ने उसे रीतिरिवाजों और नियमों का विज्ञान माना, तो किसी ने उसे चरित्र का विज्ञान बताया। दूसरे कुछ विचारकों ने उसे कर्तव्यशास्त्र और औचित्य-अनौचित्य के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया, तो अन्य कुछ विचारकों ने उसे परमशुभ ( श्रेय ) या मानवजीवन में सन्निहित आदर्श का विज्ञान बताया। संक्षेप में नीतिशास्त्र की पाश्चात्य परिभाषाओं के इन विभिन्न दृष्टिकोणों को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है -
१. नीतिशास्त्र रीतिरिवाजों अथवा सामाजिक नियमों का विज्ञान है। २. नीतिशास्त्र आचरण या चरित्र का विज्ञान है । ३. नीतिशास्त्र उचित एवं अनुचित का विज्ञान है। ४. नीतिशास्त्र कर्तव्य का विज्ञान है। ५. नीतिशास्त्र मानवजीवन में सन्निहित आदर्श या परमश्रेय का विज्ञान है।
१. दि थ्योरी आफ गुड ऐण्ड एविल, पृ० ४१८. २. वही, पृ० १९. ३. गीता, ४।१७. ४. देखिए-नीतिशास्त्र का सर्वेक्षण, संगमलाल पाण्डे, पृ० २-११.
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