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________________ भारतीय आचारदर्शन का स्वरूप चाहिए तथा शास्त्र के द्वारा विहित कर्म को जानकर ही विद्वान् पुरुष को आचरण करना चाहिए। क्योंकि जो पुरुष शास्त्र-विधि को छोड़कर इच्छानुसार आचरण करता है, वह न तो सुख प्राप्त करता है और न ही परमगति को प्राप्त . होता है। ४. विभिन्न नैतिक मान्यताओं की समीक्षा के लिए आचारदर्शन के अध्ययन की आवश्यकता-मानव में नैतिक विवेक की अपरिहार्य उपस्थिति ही, उसके ज्ञान की अपूर्णता और परमार्थ के स्वरूप की जटिलता के कारण, अनेक नैतिक सिद्धान्तों की स्थापना का आधार बनी है। व्यक्ति की मूलभूत समस्या यह है कि वह किस आधार पर यह निर्णय करे कि क्या शुभ है और क्या अशुभ है । उसके नैतिक निर्णयों का आधार क्या हो ? व्यक्ति के पास ऐसा कौन-सा प्रतिमान या निकष है जिसके आधार पर वह किसी कर्म को शुभ अथवा अशुभ कहे ? वह दृष्टिकोण क्या है जिसके आधार पर कर्मों की शुभता और अशुभता का निश्चय किया जाता है ? इन प्रश्नों ने सदैव मानवीय चिन्तन को प्रभावित किया है और विचारकों ने इन प्रश्नों के समाधान के विभिन्न प्रयास किये हैं। किसी ने कर्ता के संकल्प या कर्म प्रेरक को कर्मों की शुभाशुभता का आधार माना, तो किसी ने कर्मों के परिणामों को ही उनकी शुभाशुभता का आधार माना। इसी प्रकार 'कर्मों की शुभाशुभता की कसौटी क्या है ?' इस प्रश्न के विविध उत्तरों के आधार पर नैतिक प्रतिमानों के अनेक सिद्धान्त अस्तित्व में आये । एक ओर, किसी ने 'नियम' को तो किसी ने 'सुख' को नैतिक प्रमापक कहा; दूसरी ओर, कुछ विचारकों ने 'आत्मपूर्णता' को ही नैतिक प्रमापक माना, तो कुछ ने 'मूल्य' के नैतिक प्रतिमान की स्थापना की; इतना ही नहीं, इन विभिन्न धारणाओं के अन्तर्गत भी अनेक सिद्धान्त अस्तित्व में आये । अतः वर्तमान स्थिति में इन विभिन्न सिद्धान्तों के गुण-दोषों की समीक्षा किये बिना ही नैतिक निर्णय दे पाना सम्भव नहीं है । नैतिकता के सैद्धान्तिक अध्ययन के अभाव में व्यक्ति अपने नैतिक विवेक का यथार्थ उपयोग नहीं कर सकता। $ ३. सैद्धान्तिक अध्ययन का व्यावहारिक जीवन से सम्बन्ध नैतिकता के सैद्धान्तिक अध्ययन का नैतिक आचरण से सीधा सम्बन्ध नहीं है । व्यक्ति नैतिक सिद्धान्तों के बिना भी नैतिक आचरण कर सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि एक सदाचारी व्यक्ति नीतिशास्त्र का गहन अध्ययन करे। एक ओर नीतिशास्त्र के सैद्धान्तिक अध्ययन के बिना भी एक व्यक्ति सदाचारी हो सकता है, दूसरी ओर नीतिशास्त्र का एक मर्मज्ञ विद्वान् भी दुराचारी हो सकता है। अतः यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है कि नैतिक सिद्धान्तों के अध्ययन का व्यावहारिक दृष्टि से क्या १. गीता, ४।१७. २. वही, १७१२४. ३. वही, १७४२३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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