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नैतिक जीवन का साष्य (मोक्ष)
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निर्वचन करने में कथमपि समर्थ नहीं है। वहाँ वाणी मूक हो जाती है, तर्क की वहाँ तक पहुँच नहीं है, बुद्धि (मति) उसे ग्रहण करने में असमर्थ है अर्थात् वह वाणी विचार और बुद्धि का विषय नहीं है। किसी उपमा के द्वारा भी उसे नहीं समझाया जा सकता । वह अनुपम है, अरूपी है, सत्तावान् है । उस अपद का कोई पद नहीं है अर्थात् ऐसा कोई शब्द नहीं है, जिसके द्वारा उसका निरूपण किया जा सके।''
बौद्ध-वर्शन में निर्वाण का स्वरूप--भगवान् बुद्ध की दृष्टि में निर्वाण का स्वरूप क्या है ? यह विवाद का विषय रहा है। बौद्ध-दर्शन के अवान्तर सम्प्रदायों में भी निर्वाण के स्वरूप को लेकर आत्यन्तिक विरोध पाया जाता है। आधुनिक विद्वानों ने भी इस सम्बन्ध में परस्पर विरोधी निष्कर्ष निकाले हैं, जो एक तुलनात्मक अध्येता को अधिक कठिनाई में डाल देते हैं। वस्तुतः इस कठिनाई का मूल कारण पालि निकाय में निर्वाण का विभिन्न दृष्टियों से, अलग-अलग प्रकार से विवेचन किया जाना है। श्री पुंसें एवं प्रो० नलिनाक्षदत्त ने बौद्ध निर्वाण के सम्बन्ध में विद्वानों के दृष्टिकोणों को इस प्रकार वर्गीकृत किया है
१. निर्वाण एक अभावात्मक तथ्य है । २. निर्वाण अनिवर्चनीय अव्यय अवस्था है। ३. निर्वाण की बुद्ध ने कोई व्याख्या नहीं दी है। ४. निर्वाण भावात्मक, विशुद्ध एवं पूर्ण-चेतना की अवस्था है।
बौद्ध-दर्शन के अवान्तर प्रमुख सम्प्रदायों का निर्वाण के स्वरूप के सम्बन्ध में निम्न प्रकार से दृष्टि-भेद है
१. वैभाषिक सम्प्रदाय-इनके अनुसार निर्वाण संस्कारों या संस्कृत धर्मों का अभाव है । क्योंकि संस्कृतधर्मता ही अनित्यता है, यही बन्धन एवं दुःख है । लेकिन निर्वाण तो दुःख-निरोध है, बन्धनाभाव है और इसलिए वह एक असंस्कृत धर्म है और असंस्कृत धर्म के रूप में उसकी भावात्मक सत्ता है । वैभाषिक मत के निर्वाण के स्वरूप को अभिधर्मकोष की व्याख्या में इस प्रकार से बताया गया है-निर्वाण नित्य, असंस्कृत, स्वतंत्रसत्ता, पृथभूत सत्य पदार्थ (द्रव्यसत्) है। निर्वाण में संस्कार या पर्यायों का अभाव होता है, लेकिन यहां संस्कारों के अभाव का अर्थ अनस्तित्व नहीं है, वरन् एक भावात्मक अवस्था ही है । निर्वाण असंस्कृत धर्म है। प्रो. शारवात्स्की ने वैभाषिक निर्वाण को अनन्त मृत्यु कहा है। उनके अनुसार निर्वाण आध्यात्मिक अवस्था नहीं, वरन्
१. आचारांग, १।५।६।१७१ तुलना कीजिए-तैत्तिरीय २।९, मुण्डक ३३१४८ २. इनसाइक्लोपीडिया आफ रिलीजन एंड एथिक्स, खण्ड, ९ पृ० ३७९-७७ ३. आस्पेक्टस् आफ महायान इन रिलेशन टू हीनयान, पृ० १४५ ४. अभिधर्म कोष व्याख्या, १० १७ ५. कान्सेप्शन आफ बुद्धिस्ट निर्वाण, पृ० २७
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