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नैतिक जीवन का साध्य (मोक्ष)
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(Ability) नहीं । पूर्णता के प्रकाश में हमें अपनी अपूर्णता का बोध होता है, अपूर्णता का बोध पूर्णता की उपस्थिति का संकेत अवश्य है, लेकिन वह पूर्णता की उपलब्धि नहीं है । जैसे दूध में प्रतीत होने वाली स्निग्धता उसमें निहित मक्खन की सूचक अवश्य है, लेकिन मक्खन की उपलब्धि नहीं है । जैसे दूध में निहित मक्खन को पाने के लिए प्रयत्न आवश्यक है, वैसे 'स्व' में निहित पूर्णता की उपलब्धि के लिए प्रयत्न आवश्यक है । नैतिकता उसी सम्यक् प्रयत्न की सूचक है, जिसके माध्यम से हम उस पूर्णता को उपलब्ध कर सकते हैं । हेडफोल्ड लिखते हैं कि "हम जो कुछ हैं वही हमारा 'स्व' (Self) नहीं है, वरन् हमारा 'स्व' वह है जोकि हम हो सकते हैं ।" हमारी सम्भावनाओं में हो हमारी सत्ता अभिव्यक्त होती है और इसी अर्थ में आत्मपूर्णता हमारा साध्य भी है । जैसे एक बालक में निहित समग्र क्षमताएँ जहाँ एक ओर उसकी सत्ता में निहित हैं वहीं दूसरी ओर उसका साध्य हैं। ठीक इसी प्रकार आत्मपूर्णता हमारा साध्य है । यदि हम आत्मपूर्णता को नैतिक जीवन का परम साध्य मानते हैं, तो हमें यह भी स्पष्ट करना होना कि आत्मपूर्णता का तात्पर्य क्या है ? आत्मपूर्णता का तात्पर्य आत्मोपलब्धि ही है, वह स्व में 'स्व' को पाना है । लेकिन जिस आत्मा या 'स्व' को उपलब्ध करना है वह सीमित या अपूर्ण आत्मा नहीं, वरन् ऐसी आत्मा है जो समग्र वासनाओं, संकल्पों एवं संघर्षों से ऊपर है, विशुद्ध दृष्टा एवं साक्षी स्वरूप है । हमारी शुद्ध सत्ता हमारे ज्ञान, भाव और संकल्प सभी का आधार होते हुए भी सभी से ऊपर एक निर्विकल्प, वीतराग साक्षी की स्थिति है । इसी स्थिति की उपलब्धि को पूर्णात्मा का साक्षात्कार, परम आत्मा की उपलब्धि कहा जाता है । पाश्चात्य दर्शन में पूर्णता के दो अर्थ रहे हैं—एक अर्थ में वह चेतना के ज्ञान, भाव और संकल्प के मध्य सांग संतुलन है तो दूसरी ओर वह वैयक्तिक सीमाओं और सीमितताओं से ऊपर उठना है ताकि समाज के अन्य घटकों और हमारे बीच का द्वत समाप्त हो सके और व्यक्ति एक महापुरुष के रूप में समाज का मार्गदर्शन कर सके । ब्रेडले का कथन है कि 'मैं अपने नैतिक रूप से अभिव्यक्त तभी करता हूँ, जब मेरी आत्मा मेरी निजी आत्मा नहीं रह जाती, जब मेरा संकल्प अन्य लोगों के संकल्प से भिन्न नहीं रह जाता और जब मैं दूसरों के संसार में केवल अपने को पाता हूँ । आत्मानुभूति का अर्थ है असीम व अनन्त हो जाना, अपने व पराये के अन्तर को मिटा देना । यह है पराभौतिक स्तर पर आत्मानुभूति का अर्थ । मनोवैज्ञानिक स्तर पर आत्मानुभूति का अर्थ होगा हमारी सम्पूर्ण बौद्धिक, नैतिक एवं कलात्मक योग्यताओं तथा क्षमताओं की अभिव्यक्ति । यदि हम अपनी कामनाओं एवं उद्देश्यों को एक साथ रखकर देखें तो सभी विशेष उद्देश्य कुछ सामान्य और व्यापक उद्देश्यों के अन्तर्गत आ जाते हैं जो परस्पर मिलकर एक
१. साइकालाजी एण्ड मारलस्, पृ० १८३
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२. एथिकल स्टडीज्, पृ० ११
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