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________________ ४८९ ४८९ ४९१ ४९२ जैनदर्शन में मनोनिग्रह ४८८ / बौद्धदर्शन में मनोनिग्रह ४८८ / गीता में मनोनिग्रह ४८८ / ११. आधुनिक मनोविज्ञान में मनोनिग्रह : एक अनुचित धारणा १२. समालोच्य आचार-दर्शनों में दमन की अनौचित्यता जैन दर्शन में मनोनिग्रह का अनौचित्य ४८९ / बौद्ध दर्शन में दमन का अनौचित्य ४९० / गीता में दमन का अनौचित्य ४९० / १३. जैन दर्शन का साधना मार्ग-वासनाओं का दमन नहीं, वासना का क्षय; १४. वासनाक्षय एवं मनोजय का सम्यक् मार्ग १५. जैन दर्शन में मन की चार अवस्थाएँ १. विक्षिप्त मन | २. यातायात मन | ३. श्लिष्ट मन | ४. सुलीन मन ४९४/ १६. बौद्ध दर्शन में चित्त की चार अवस्थाएँ १. कामावचर चित्त / २. रूपावचर चित्त ४९४ । ३. अरूपा वचर चित्त / लोकोत्तर चित्त ४९५ / १७. योगदर्शन में चित्त की पाँच अवस्थाएँ १. क्षिप्त चित्त २. मूढ़ चित्त | ३. विक्षिप्त चित्त / ४. एकाग्र चित्त / निरुद्ध चित्त ४९५ / ४९४ १८ मनोवृत्तियाँ (कषाय एवं लेश्याएँ) ४९९ ४९९ ४९९ ० ५०० १. कषाय सिद्धान्त २. कषाय का अर्थ ३. कषाय की उत्पत्ति ४. कषाय के भेद ६. क्रोध १. क्रोध | २. कोप | ३. दोष | ४. रोष | ५. संज्वलन | ६. अक्षमा | ७. कलह | ८. चण्डिक्य | ९. मंडन | १०. विवाद ५०१/ ७. क्रोध के प्रकार १. अनन्तानुबन्धी क्रोध (तीव्रतम क्रोध) / २. प्रत्याख्यानी क्रोध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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