________________
- ३७ -
४६५
४६८
४६९
७. कामना का उद्भव और विकास
जैन दृष्टिकोण ४६६ / बौद्ध दृष्टिकोण ४६७ / गीता का दृष्टि
कोण ४६७ / निष्कर्ष ४६८ / ८. 'इन्द्रिय' शब्द का अर्थ
(अ) जैन दृष्टिकोण | (ब) बौद्ध दृष्टिकोण | (स) गीता का
दृष्टिकोण ४६८/ ९. जैन दर्शन में इन्द्रिय-स्वरूप
जैन दर्शन में इन्द्रियों के विषय ४६९ । जैन दर्शन में इन्द्रिय
निरोध ४७१ / १०. बौद्ध दर्शन में इन्द्रिय-निरोध ११. गीता में इन्द्रिय-निरोध १२. क्या इन्द्रिय-दमन सम्भव है ?
जैनदर्शन और इन्द्रिय-दमन ४७४ | बौद्ध दर्शन और इन्द्रियदमन ४७५ / गीता और इन्द्रिय-दमन ४७५ /
४७२ ४७३ ४७४
१७ मन का स्ववरूप तथा नैतिक जीवन में उसका स्थान
४७९ ४७९
४७९
४८०
४८० ૪૮૨
१. मन का स्वरूप २. द्रव्यमन और भावमन ३. मन शरीर के किस भाग में स्थित है ? ४. जैनदर्शन में द्रव्यमन और भावमन की कल्पना ५. द्रव्यमन और भावमन का सम्बन्ध ६. नैतिक चेतना में मन का स्थान ।
जैन दृष्टिकोण ४८२ / बौद्ध दृष्टिकोण ४८३ / गीता एवं
वेदान्त का दृष्टिकोण ४८३ / ७. मन ही बन्धन और मुक्ति का कारण क्यों ? ८. मन अविद्या का वासस्थान ९. नैतिक प्रगति और नैतिक उत्तरदायित्व एवं मन १०. मनोनिग्रह
४८४
४८५ ४८६ ४८७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org