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________________ १. धर्म और नैतिकता का सम्बन्ध २. धर्म और ईश्वर ३. कर्म - सिद्धान्त और ईश्वर ४. जैन दर्शन का समाधान गीता का दृष्टिकोण ५. ६. नैतिक साध्य के रूप में ईश्वर ७. उपास्य के रूप में ईश्वर ८. ईश्वर मूल्यों के अधिष्ठान के रूप में 1 १. मनोविज्ञान और आचार-दर्शन का सम्बन्ध ३६ २. नैतिकता का क्षेत्र संकल्पयुक्त कर्म I जैन आचार-दर्शन और मनोविज्ञान ४५४ / चेतन जीवन के विविध पक्ष और नैतिकता ५५५ / १५ नैतिकता, धर्म और ईश्वर १६ जैन आचारदर्शन का मनोवैज्ञानिक पक्ष पाश्चात्य दृष्टिकोण ४५६ | जैन दृष्टिकोण ४४६ / बौद्ध दृष्टिकोण ४५९ / गीता का दृष्टिकोण ४५९ / निष्कर्ष ४५९ / ३. प्राणीय व्यवहार के प्रेरक तत्त्व ६. गीता में कर्म - प्रेरकों का वर्गीकरण Jain Education International वासना का उद्भव तथा विकास ४६० | जैन दृष्टिकोण ४६१ / गीता का दृष्टिकोण ४६२ / पाश्चात्य मनोविज्ञान में व्यवहार के मूलभूत प्रेरकों का वर्गीकरण ४६२ / ४. जैन दर्शन में व्यवहार के प्रेरक तत्त्वों (संज्ञाओं) का वर्गीकरण ५. बौद्ध दर्शन के बावन चैत्तसिक धर्म ( अ ) अन्य समान चैत्त सिक / ( ब ) अकुशल चैत्त सिक ४६४ / ( स ) कुशल चैत्त सिक ४६५ / ४३७ ४४० For Private & Personal Use Only ४४१ ४४२ ४४२ ४४५ ४४७ ४४८ ४५३ ४५६ ४६० ४६३ ४६३ ४६५ www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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