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१. जीवन-लक्ष्य की शोध में
२. जीवन क्या है ?
३. नैतिकता का साध्य
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६.
४. जैन, बौद्ध और गीता के आचार-दर्शनों में परम साध्य
जैन दर्शन में वीतराग का जीवनादर्श
बौद्ध दर्शन में अर्हत् का जीवनादर्श
७.
गीता में स्थितप्रज्ञ का जीवनादर्श
८. शांकर वेदान्त में जीवन्मुक्त के लक्षण
जैन दर्शन में मोक्ष का स्वरूप
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( अ ) संघर्ष का निराकरण एवं समत्व का संस्थापन ४०७ / १. मनोवृत्तियों का आन्तरिक संघर्ष / २. व्यक्ति की आन्तरिक अभिरुचियों और बाह्य परिस्थितियों का संघर्ष / ३. बाह्य वातावरण के मध्य होनेवाला संघर्ष ४०७ / ( ब ) आत्म- पूर्णता ४११ | (स) आत्म-साक्षात्कार ४१४ | जैन दृष्टिकोण और आत्म-साक्षात्कार ४१४ /
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नैतिक जीवन का साध्य (मोक्ष)
जैन दर्शन में मुक्ति के दो रूप ४१५ / बौद्ध परम्परा में दो प्रकार का निर्वाण ४१५ / वैदिक परम्परा में दो प्रकार की मुक्ति ४१६ /
१०. बौद्ध दर्शन में निर्वाण का स्वरूप
( अ ) भावात्मक दृष्टिकोण ४२० | ( ब ) अभावात्मक दृष्टिकोण ४२२ / ( स ) अनिर्वचनीय दृष्टिकोण ४२२ /
१. वैभाषिक सम्प्रदाय ४२३ / २. सौत्रान्तिक सम्प्रदाय ३२४ | ३. विज्ञानवाद (योगाचार ) ४२५ / ४. शून्यवाद ४२६ / निर्वाण भावात्मक तथ्य ४२७ / निर्वाण अभावात्मक तथ्य ४२७ / निर्वाण की अनिर्वचनीयता ४२८ |
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११. गीता में मोक्ष का स्वरूप
निष्कर्ष ४३१ |
१२. साध्य, साधक और साधना पथ का पारस्परिक सम्बन्ध
साध्य और साधक - जैनदृष्टिकोण ४३१ / गीता का दृष्टिकोण ४३३ / साधना पथ और साध्य ४३३ /
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