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________________ - ३४ - ३७६ ३७८ ५. घाती और अघाती कर्म सर्वघाती और देशघाती कर्म प्रकृतियाँ ३७७ / ६. प्रतीत्यसमुदत्पाद और अष्टकर्म, एक तुलनात्मक विवेचन १. अविद्या ३७८ / २. संस्कार ३७९ / ३. विज्ञान ३७९ / ४. नाम-रूप ३७९ / ५. षडायतन ३७९ / ६. स्पर्श ३८०/ ७. वेदना ३८० ८. तृष्णा ३८० / ९. उपादान ३८० / १०. भव ३८१ / ११. जाति ३८१ / १२. जरा-मरण ३८१ / ७. महायान दृष्टिकोण और अष्टकर्म ८. कम्मभव और उप्पत्तिभव तथा घाती और अघाती कर्म ९. चेतना के विभिन्न पक्ष और बन्धन आधुनिक मनोविज्ञान में चेतना ३८३ | जैन दृष्टिकोण ३८४ / बौद्ध दृष्टिकोण से तुलना ३८५ / ३८१ ३८२ ३८३ बन्धन से मुक्ति की ओर (संवर और निर्जरा) ३८७ ३८८ ३८९ ३९० ३९१ १. संवर का अर्थ २. जैन परम्परा में संवर का वर्गीकरण ३. बौद्ध दर्शन में संवर ४. गीता का दृष्टिकोण ५. संयम और नैतिकता १.खान-पान में संयम ३९३ / २. भोगों में संयम ३९४ / ३. वाणी का संयम ३९४ / ६. निर्जरा द्रव्य और भाव निर्जरा ३९५ / सकाम और अकाम निर्जरा ३९५ / जैन साधना में औपक्रमिक निर्जरा का स्थान ३९६ / औपक्रमिक निर्जरा के भेद ३९८ / ७. बौद्ध आचार दर्शन और निर्जरा ८. गीता का दृष्टिकोण ९. निष्कर्ष ३९५ ३९९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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