SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०१ ५०३ (तीव्रतर क्रोध) | ३. अप्रत्याख्यानी क्रोध (तीव्र क्रोध) / ४. संज्वलन क्रोध (अल्प क्रोध) ५०१ / ८. बौद्ध दर्शन में क्रोध के तीन प्रकार ९. मान (अहंकार) १. मान | २. मद | ३. दर्प | ४. स्तम्भ | ५ गर्व | ६. अत्युक्रोश | ७. परपरिवाद ) ८. उत्कर्ष | ९. अपकर्ष | १०. उन्नतनाम /११. उन्नत | १२. पुर्नाम ५०२ / मान के प्रकार १. अनन्तानुबन्धी मान । २. प्रत्याख्यानी मान / ३. अप्रत्या ख्यानी मान | ४. संज्वलन मान ५०२ / १०. माया १. माया | २. उपाधि | ३. निकृति | ४. वलय | ५. गहन | ६. नूम | ७. कल्क | ८. करूप | ९. निह्नता | १०. किल्विषिक | ११. आदरणता | १२. गृहनता । १३. वंचकता | १४. प्रतिकुंचनता ५०२ / १५. सातियोग ५०३ / ११. माया के चार प्रकार १. अनन्तानुबन्धी माया | २. अप्रत्याख्यानी माया । ३. प्रत्या ख्यानी माया | ४. संज्वलन माया ५०३ / १२. लोभ १. लोभ | २. इच्छा | ३. मूर्छा | ४. कांक्षा | ५. गृद्धि | ६. तृष्णा | ७. मिथ्या | ८. अभिध्या | ९. आशंसना | १०. प्रार्थना | ११. लालपनता | १२. कामाशा | १३. भोगाशा | १४. जीविताशा | १५. मरणाशा | १६. नन्दिराग ५०३ / १३. लोभ के चार भेद। १. अनन्तानुबन्धी लोभ / २. अप्रत्याख्यानी लोभ | ३. प्रत्या ख्यानी लोभ / ४. संज्वलन लोभ ५०३ / १४. नोकषाय १. हास्य । २. शोक | ३. रति / ४. अरति | ५. घृणा । ६. भय ५०४ / ७. स्त्रीवेद | ८. पुरुषवेद | ९. नपुंसकवेद ५०५ / १५. कषायजय नैतिक प्रगति का आधार १६. पहले प्रकार की वृत्तियों के परिणाम १७. दूसरे प्रकार की वृत्तियों के परिणाम ५०३ ५०३ ५०७ ५०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy