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________________ आत्मा को स्वतन्त्रता २७५ भवितव्यता से इस अर्थ में भिन्न है कि भवितव्यता में घटनाओं को पूर्वनियत माना गया है और यदृच्छावाद में अनियत माना गया है। यदृच्छावाद में संयोग ही महत्त्वपूर्ण है, वह प्रत्येक घटना को एक संयोग के रूप में देखता है और उस संयोग को आकस्मिक मानता है। यदृच्छावाद एक प्रकार से अतन्त्रतावाद है। पाश्चात्य नैतिक चिन्तन के सन्दर्भ में यदृच्छावाद का विवेचन इच्छा-स्वातन्त्र्य सिद्धान्त के एक अंग के रूप में किया जा सकता है, क्योंकि यह मानता है कि इच्छाओं का कोई हेतु नहीं होता, वे अहेतुक हैं। यदच्छावाद का नैतिक मूल्य यदृच्छावाद का इच्छा-स्वातन्त्र्य के रूप में कुछ मूल्य अवश्य हो सकता है। यदृच्छावादी नैतिक उत्तरदायित्व की व्याख्या का प्रयत्न करता है, क्योंकि उसके अनुसार कार्य की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती । ब्रैडले ने उत्तरदायित्व की समस्या पर विचार करते हुए कहा है कि नैतिक जीवन में व्यक्ति को उत्तरदायी बनाने की दृष्टि से नियतिवाद और इच्छा-स्वातन्त्र्य दोनों का स्थान है।' यद्यपि पूर्वसंस्कारों ( पूर्वकर्म ) को वर्तमान चरित्र के निर्माण का कारण माना गया है, तथापि पूर्वसंस्कारों को ही सब कुछ मानने पर हम नियतिवाद के निकट होंगे। वास्तव में यदृच्छा का सिद्धान्त कारण का अभाव नहीं, वरन् कारण के ऊपर कर्ता की स्वतन्त्र इच्छा का स्वीकरण है और नैतिक उत्तरदायित्व एवं नैतिक आदेश की दृष्टि से कर्ता की इच्छा की स्वतन्त्रता का अपना मूल्य है । यदृच्छावाद के पक्ष में युक्तियार १. वरण का अर्थ-यदृच्छावादी जब किसी इच्छा का वरण करता है और कोई संकल्प करता है तब वह पूर्ण स्वतन्त्र है । उसपर किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु का अंकुश नहीं होता। वह आन्तरिक प्रेरणाओं और इच्छाओं से भी स्वतन्त्र है, क्योंकि इनके विपरीत भी वह वरण कर सकता है । इसका प्रबल प्रमाण यह है कि जो लोग उसको भलीभाँति जानते हैं वे उसके वरण को तब तक ठीक तरह से नहीं बता सकते जब तक कि उसने वरण न कर लिया हो। उसके वरण की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती । अगर कोई भविष्यवाणी कर दे तो वह अपने वरण से उसको गलत सिद्ध कर देता है । इससे स्पष्ट है कि वरण पूर्णतया समस्त हेतुओं से रहित है, या अहेतुक है । २. दायित्व की व्याख्या-यदृच्छावादी कहता है कि उत्तरदायित्व की व्याख्या यदृच्छावाद से ही हो सकती है । यदृच्छावादी अपने कर्म के लिए उत्तरदायी है, क्योंकि उसके कार्य की भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता । यदृच्छावाद को न मानने से व्यक्ति का उत्तरदायित्व समाप्त हो जाता है । १. एथिकल स्टडीज, पृ० ३२-३३. २. नीतिशास्त्र का सर्वेक्षण, ५७-५८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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