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________________ ३१८ जैन दृष्टिकोण ३१६ / बौद्ध दृष्टिकोण ३१६ / गीता एवं हिन्दू परम्परा का दृष्टिकोण ३१७ / तुलना एवं समीक्षा ३१७ / १३. जैन दर्शन में कर्म की अवस्था १. बन्ध ३१८ / २. संक्रमण ३१९ / ३. उद्वर्तना ३१९ / ४. अपवर्तना ३१९ / ५. सत्ता ३२० / ६. उदय ३२० / ७ उदीरणा ३२० / ८. उपशमन ३२० / ९. निधत्ति ३२० / १०. निकाचना ३२० / कर्म की अवस्थाओं पर बौद्ध धर्म की दृष्टि से विचार एवं तुलना ३२१ / कर्म की अवस्थाओं पर हिन्दू आचार दर्शन की दृष्टि से विचार एवं तुलना ३२१ / १४. कर्म विपाक को नियतता और अनियतता जैन दृष्टिकोण ३२३ / बौद्ध दृष्टिकोण ३२४ / नियतविपाक कर्म ३२४ / अनियतविपाक कर्म ३२४ / गीता का दृष्टिकोण .३२५ / निष्कर्ष ३२५ ) २५. कर्म-सिद्धान्त पर आक्षेप और उनका प्रत्युत्तर कर्म-सिद्धान्त पर मेकेंजी के आक्षेप और उनके प्रत्युत्तर ३२५ / ३३२ ૧૧ कर्म का अशुभत्व, शुभत्व एवं शुद्धत्व १. तीन प्रकार के कर्म ३३१ २. अशुभ या पाप कर्म पाप या अकुशल कर्मों का वर्गीकरण ३३२ / जैन दृष्टिकोण ३३२) बौद्ध दृष्टिकोण ३३२ / कायिक पाप ३३२ / वाचिक पाप ३३२ / मानसिक पाप ३३२ / गीता का दृष्टिकोण ३३३ / पाप के कारण ३३३ / ३. पुण्य (कुशल कर्म) ३३३ पुण्य या कुशल कर्मों का वर्गीकरण ३३४ | ४. पुण्य और पाप (शुभ और अशुभ) की कसौटी ३३५ ५. सामाजिक जीवन में आचरण के शुभत्व का आधार ३३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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