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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारवर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन नैतिक युक्तियाँ-आधुनिक युग में आत्मा की अमरता को सिद्ध करने के लिए दार्शनिक युक्तियों की अपेक्षा नैतिक यक्तियों को अधिक पसन्द किया जाता है । माटिन्य, कांट, जेम्स सेथ और हाफडिंग आदि ने निम्नलिखित नैतिक युक्तियां दी हैं
(अ) ज्ञान की पूर्णता के लिए-मार्टिन्य आत्मा की अमरता को आवश्यक मानते हैं। उनका कहना है कि हमारी मनीषा दिक-काल से मर्यादित होती है। मनीषा को विकास हेतु क्रमशः दिक्-काल की मर्यादाओं से ऊपर उठना होता है। परन्तु वर्तमान सीमित जीवन में मानस दिक्-काल की मर्यादाओं को पूर्णतः नहीं लांघ सकता । अतः यह आशा करना तर्कसंगत होगा कि मृत्यु के पश्चात् एक भविष्य जीवन होता है जिसमें मनीषा अपनी पूर्णता प्राप्त करेगी तथा दिक्-काल की मर्यादाओं का पूर्ण उल्लंघन कर सकेगी। जैन दर्शन के अनुसार भी जब तक आत्मा पूर्ण ज्ञान को प्राप्त नहीं कर लेता है, वह पुनः-पुनः जन्म धारण करता है।'
(ब) नैतिक आवर्श की पूर्णता या चरित्र के पूर्ण विकास के लिए-मार्टिन्यू का कहना है कि नैतिक आदर्श असीम होता है। यह वर्तमान जीवन में पूर्णतः प्राप्त नहीं किया जा सकता। नैतिक प्रगति जितनी अधिक होती है, नैतिक आदर्श भी उतना ही अधिक उच्च होता जाता है । अतः नैतिक आदर्श की प्राप्ति के लिए अनश्वर अथवा अमर जीवन की आवश्यकता होती है। कांट इसका वर्णन इस प्रकार करता है-इच्छा एवं कर्तव्य के मध्य संघर्षों को कभी भी पूर्णतः सीमित जीवन में समाप्त नहीं किया जा सकता। अतः वर्तमान जीवन के ही क्रम में एक भावी जीवन भी होना चाहिए, जहाँ मानवीय आत्मा का व्यक्तित्व जीवित रहकर इच्छा एवं कर्तव्य के मध्य सामंजस्य स्थापित कर सके । जेम्स सेथ ने इम नैतिक दलील को इस प्रकार दिया है-नैतिक आदर्श अपरिछिन्न है। सीमित काल में उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसलिए आत्मा का अस्तित्व अनन्त काल तक रहना चाहिए अति आत्मा को अमर होना चाहिए । मनुष्य के जीवन का लक्ष्य असोम है। इस टोटे-ये जीवन में उसको प्रा पा जाना असम्भव है। यह जीवन तो भावी जीवन के गिा तैयार होने का समय है। मृत्यु जीवन का अन्त नहीं है। शक्तियों की मार्थकता तभी है, जब उनकी पुरी अभिव्यक्ति हो । ऐसी शक्ति को मानना जिसको पूरी अभिव्यक्ति न हो सके, स्वविरोधी है।
(स) मूल्यों के संरक्षण के लिए-हाफडिंग ने मूल्यों की नित्यता के सिद्धान्त को माना है और कहा है कि इस जीवन में हम जिन मूल्यों को उपलब्ध करते हैं, वे नैतिक दुनिया में सुरक्षित रहते हैं। उनका नाश नहीं होता और अपने अधिष्ठान के रूप में
१. नीतिशास्त्र का सर्वेक्षण पृ० २९२. २. वही, पृ० २६२. ३. वही, पृ० २९२. ४. पश्चिमी दर्शन, पृ० २१९.
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