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आत्मा की अमरता
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उन्हें आत्मा का सनातन अस्तित्व चाहिए । इस प्रकार मूल्यों की नित्यता का सिद्धान्त आत्मा की अमरता सिद्ध करता है ।
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(द) शुभाशुभ के फल-भोग के लिए कांट ने आत्मा की अमरता के समर्थन में एक और नैतिक दलील दी है । हमें इस बात का पक्का विश्वास होता है कि पुण्य करनेवाले को सुख मिलना चाहिए और पाप करनेवाले को दुःख । लेकिन पुण्य करने वाले इस दुनिया में बहुत कम सुखी होते हैं । इसलिए हम यह मान लेते हैं कि मरने के बाद एक दूसरा जीवन होगा जिसमें पुण्य करनेवालों को उचित मात्रा में सुख और पाप करनेवालों को उचित मात्रा में दुःख मिलेगा । देखा जाता है कि यहाँ पापियों को भी पूरा दण्ड नहीं मिलता । शारीरिक यातना, कारावास इत्यादि से भी पापियों को उचित मात्रा में दुःख नहीं मिलता । इसलिए भविष्य के जीवन में उनको उचित मात्रा में दुःख मिलेगा | इसलिए इस जन्म के नैतिक कर्मों के फलभोग के लिए मरणोत्तर जीवन को स्वीकार करना होगा । एक व्यक्ति जीवन भर सत्कर्म करता है लेकिन उसे बुरा फल मिलता है और दूसरा व्यक्ति जीवन भर असत्कर्म करता है लेकिन उसे अच्छा फल मिलता है तो हमारी यह मान्यता होती है कि इस जीवन के पूर्व जीवन में पहले व्यक्ति ने असत्कर्म किये होंगे और दूसरे ने सत्कर्म, जिनका प्रतिफल उन्हें इस जीवन में मिल रहा है । इस प्रकार इस जीवन के पूर्व जीवन को स्वीकार करना होता है । इस प्रकार वर्तमान जीवन जन्म से पूर्व और वर्तमान जीवन की समाप्ति के पश्चात् भी आत्मा का अस्तित्व मानना ही आत्मा की अमरता की मान्यता है । बिना आत्मा की अमरता को स्वीकार किये कर्मफलव्यतिक्रम की सम्यक् व्याख्या नहीं की जा सकती
१. पश्चिमी दर्शन, पृ० २१६. २. बही, पृ० २१६.
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