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________________ २९ २६५ / जैनदर्शन में कालवाद का स्थान २६५ / ३. स्वभाववाद २६६ / स्वभाववाद का नैतिक योगदान २६६ / समीक्षा २६६ / स्वभाववाद का जैन दर्शन में स्थान २६७ / ४. भाग्यवाद २६८ / समीक्षा २६८ / ५ ईश्वरवाद २६९ / ६. सर्वज्ञतावाद २७० / ३. पाश्चात्य दर्शन में नियतिवाद की धारणा नियतिवाद के सामान्य लाभ २७२ / नियतिवाद अपने सिद्धान्त का समर्थन निम्न तर्कों के आधार पर करता है २७२ / नियतिवाद की व्यावहारिक जीवन में उपयोगिता २७२ / नियतिवाद के सामान्य दोष २७४ / ४. यदृच्छावाद यदृच्छावाद का नैतिक मूल्य २७५ / यदृच्छावाद के पक्ष में युक्तियाँ २७५ / समीक्षा २७६ / भारतीय आचारदर्शन और यदृच्छावाद २७६ / ५. जैन आचारदर्शन में पुरुषार्थ और नियतिवाद महावीर द्वारा पुरुषार्थ का समर्थन २७७ / जैनदर्शन में नियतिवाद के तत्त्व २७७ / ( अ ) सर्वज्ञता २७७ / ( ब ) कर्मसिद्धान्त २७७ / ६. सर्वज्ञता का प्रत्यय और पुरुषार्थ सम्भावना सर्वज्ञता का अर्थ २७८ | कुन्दकुन्द और हरिभद्र का दृष्टिकोण २७८ | पं० सुखलालजी का दृष्टिकोण २७९ / डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री का दृष्टिकोण २७९ / सर्वज्ञता का त्रैकालिक ज्ञान सम्बन्धी अर्थ और पुरुषार्थ की सम्भावना २८० / ७. क्या जैन कर्म - सिद्धान्त निर्धारणवाद है ? ८. बोद्धदर्शन और नियतिवाद एवं यदृच्छावाद बुद्ध द्वारा यदृच्छावाद और नियतिवाद की आलोचना २८२ | ९. क्या प्रतीत्यसमुत्पाद नियतिवाद है ? १०. गीता में नियतिवाद और पुरुषार्थवाद गीता में, नियतिवाद (निर्धारणवाद) के तत्त्व २८६ / क्या गोता नियतिवादी है ? २८७ / Jain Education International For Private & Personal Use Only २७१ २७४ २७७ २७८ २८१ २८२ २८४ २८६ www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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