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________________ - २८ - २४४ २४६ २४७ ५. भ्रान्त धारणाओं का कारण अनात्म (अनत्त) का अर्थ २४४ | आत्मा (अत्ता) का अर्थ २४५ / अनित्य का अर्थ २४५ / अव्याकृत का सम्यक् अर्थ २४५ / बुद्ध मौन क्यों रहे ? २४५ / ६. जैन और बौद्ध दृष्टिकोण की तुलना ७. गीता का दृष्टिकोण जैन, बौद्ध और गीता के दृष्टिकोणों की तुलना २४७ / ८. आत्मा को अमरता और पुनर्जन्म ९. कर्मसिद्धान्त और पुनर्जन्म १०. ईसाई और इस्लाम धर्मों का दृष्टिकोण ११. उक्त दृष्टिकोण की समीक्षा १२. वैयक्तिक विभिन्नताओं के लिए वंशानुक्रम का तर्क एवं उसका उत्तर. १३. पूर्वजन्मों की स्मृति के अभाव का तर्क एवं उसका उत्तर जैन दृष्टिकोण २५१ / बौद्ध दृष्टिकोण २५२ / क्या बौद्ध अनात्मवाद पुनर्जन्म की व्याख्या कर सकता है ? २५२ / गीता का दृष्टिकोण २५३ / निष्कर्ष २५४/ १४. पाश्चात्य दर्शन में आत्मा की अमरता या मरणोत्तर जीवन दार्शनिक युक्तियां २५५ / वैज्ञानिक युक्ति २५५ । नैतिक युक्तियाँ २५६ / (अ) ज्ञान की पूर्णता के लिए २५६ / (ब) नैतिक आदर्श की पूर्णता या चरित्र के लिए पूर्ण विकास के लिए २५६ / (स) मूल्यों के संरक्षण के लिए २५६ / (द) शुभाशुभ के फल-भोग के लिए २५७ / २४७ २४८८ २४८ २४८ २५० २५० २५४ आत्मा की स्वतन्त्रता २६१ १. नैतिक जीवन और स्वतन्त्रता व्यक्ति-स्वातन्त्र्य के दो दृष्टिकोण २६२ / २. महावीरकालीन नियतिवादी मान्यताएँ १. भवितव्यतावाद २६३ / समीक्षा २६४ / २. कालवाद २६४/ कालवाद का नैतिक जीवन में योगदान २६५ / समीक्षा २६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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