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________________ २५२ जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन बौद्ध दृष्टिकोण बौद्ध दर्शन भी पुनर्जन्म के सिद्धान्त को स्वीकार करता है। जातक कथाओं में बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाएँ संकलित है। संयुक्तनिकाय में बुद्ध कहते हैं, 'सभी जीव मरेंगे, मृत्यु में ही जीवन का अन्त होता है, उनकी गति अपने कर्म के अनुसार होगी, पुण्य-पाप के फल से, पाप करने से नरक को, पुण्य करने से सुगति को, इसलिए सदा पुण्य कर्म करे जिससे परलोक बनता है। अपना कमाया पुण्य ही प्राणियों के लिए परलोक में आधार होता है ।' बौद्ध दर्शन की यह निश्चित मान्यता है कि सत्त्व (प्राणी ) अनेक जन्मों में संसरण कर अपने कर्मों का भोग करता है। उसमें भी वर्तमान जीवन के कर्मफल का सम्बन्ध भावी जन्मों से माना गया है । इस दृष्टि से उसमें तीन प्रकार के कर्म माने गये हैं-(१) दृष्टधर्म-वेदनीय-इसी जन्म में फल देनेवाला, (२) उपपद्य-वेदनीय-अगले जन्म में फल देनेवाला, (३) अपरपर्याय वेदनीय-अगले जन्म के पश्चात् किसी भी जन्म में फल देनेवाला । बौद्ध दर्शन में भी जैन दर्शन के समान योनियाँ मानी गई हैं । बौद्ध दर्शन में इन्हें भूमियाँ कहा गया हैं । ये भूमियाँ चार है-(१) अपायभूमि ( दुर्गतियाँ-नारक, तिर्यंच, प्रेत और असुर ), ( २ ) कामसुगतभूमि ( सुगतियाँ-मनुष्य और कुछ देव जातियाँ ), ( ३ ) रूपावचरभमि (विशिष्ट देव जातियाँ ) और (४) अरूपावचरभूमि । बौद्ध दर्शन में जैन दर्शन की चारों गतियाँ स्वीकृत हैं। नैतिक विकास के आधार पर इनके अनेक भेद दोनों ही दर्शनों में मान्य हैं, उनमें नाम वर्गीकरण के दृष्टिकोण आदि में भी बहुत कुछ समानता है । ध्यान रखने योग्य एक विशेष बात यह है कि जहाँ बौद्ध दर्शन में कुछ विशिष्ट देव योनियों से सीधे निर्वाण की प्राप्ति को सम्भव माना गया है, वहाँ जैन दर्शन केवल मनुष्य-जन्म से निर्वाण की उपलब्धि सम्भव मानता है। क्या बौद्ध अनात्मवाद पुनर्जन्म की व्याख्या कर सकता है ? सामान्यतया विपक्षी विचारकों ने बौद्ध-धर्म के अनात्मवाद और क्षणिकवाद को -पनर्जन्म की व्याख्या की दृष्टि से असंगत माना है। लेकिन वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है। आचार्य नरेन्द्रदेव लिखते हैं, 'नैरात्म्यवाद से पुनर्जन्म और कर्म के प्रति उत्तरदायित्व के सिद्धान्त को क्षति नहीं पहुँचती। आत्मा की प्रतिज्ञा करना भूल है, सन्तति का उल्लेख करना चाहिए।" अनात्मवाद या क्षणिकवाद के साथ पुनर्जन्म का सिद्धान्त कैसे संगत हो सकता है, इसकी विवेचना भदन्त नागसेन ने राजा मिलिन्द के सामने की थी। जब मिलिन्द ने नागसेन से अनात्मवाद एवं क्षणिकवाद की विवेचना सुनी तो उनके हृदय में भी पुनर्जन्म की असम्भावना की शंका उठ खड़ी हुई । उन्होंने नागसेन १. बौद्ध धर्मदर्शन, पृ. २८४. २ अभिधम्मत्थसंगहो, पृ० ६०. ३. वही, पृ० ५६. ४. बौद्ध धर्मदर्शन, पृ० २८६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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