SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५० जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारवर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन १२ वैयक्तिक विभिन्नताओं के लिए वंशानक्रम का तर्क एवं उसका उत्तर ___ जीवविज्ञान ने अपनी वैज्ञानिक गवेषणाओं के आधार पर जिस वंशानुक्रम के सिद्धान्त की स्थापना की है उससे कर्मसिद्धान्त पर वेष्ठित पुनर्जन्मवाद का निरसन हो जाता है । इस धारणा के अनुसार वैयक्तिक विभिन्नताओं का आधार वंशानुक्रम एवं परिवेश है, लेकिन यह धारणा भ्रान्तिपूर्ण है। यह ठीक है कि वंशानुक्रम एवं परिवेश के आधार पर व्यक्तित्व की शिथिलता को समझने का प्रयास किया जा सकता है, लेकिन प्रथम तो वंशानुक्रम एवं परिवेश हमारे व्यक्तित्व के समग्ररूपेण निर्णायक नहीं हैं, दूसरे वंशानुक्रम एवं परिवेश के निश्चय का आधार क्या है ? यदि हम यहाँ केवल संयोग को स्वीकार करेंगे तो फिर नैतिक जीवन एवं उत्तरदायित्व की व्याख्या ही असम्भव होगी, जो किसी भी नैतिक विचारणा को अभीष्ट नहीं होगी। डा० मेहता के शब्दों में 'शुद्ध वंशानुक्रम जैसा कोई तथ्य ही नहीं है । कोई भी वंशानुक्रम व्यक्ति के पूर्व चरित्र एवं कर्मों से अप्रभावित नहीं है।'' अर्थात् जो वंशानुक्रम हमें उपलब्ध हुआ है उसके कारण की व्याख्या के लिए भी पूर्वजन्म के कर्मों की मान्यता आवश्यक लगती है । यद्यपि अभी तक वैज्ञानिक आधारों पर पुनर्जन्म की धारणा को सिद्ध नहीं किया जा सका है, तथापि हमारे अनुभवात्मक जगत् में ऐसी अनेक घःनाएं घटी हैं जिनका समुचित एवं बोधगम्य समाधान पुनर्जन्म की धारणा में ही खोजा जा सकता है । 'प्रो० बनर्जी ने राजस्थान विश्वविद्यालय के परामनोविज्ञान विभाग में अपूर्व स्मृति एवं पूर्वजन्म की स्मृति से सम्बन्धित देश एवं विदेश की अनेक घटनाओं का संकलन एवं सत्यापन करने का प्रयास किया है और उनमें से अनेक को प्रामाणिक भी पाया है। उन प्रामाणिक घटनाओं की संगति केवल, पुनर्जन्म के सिद्धान्त के द्वारा ही खोजी जा सकती है। १३. पूर्वजन्मों की स्मृति के अभाव का तर्क एवं उसका उत्तर पुनर्जन्म के विरुद्ध यह भी तर्क दिया जाता है कि यदि वही आत्मा (चेतना) पुनर्जन्म ग्रहण करती है तो फिर उसे पूर्वजन्मों की स्मृति क्यों नहीं रहती है ? यदि हमें पूर्वजन्मों की घटनाओं की स्मृति नहीं है तो फिर पुनर्जन्म को किस आधार पर माना जाये ? लेकिन यह तर्क उचित नहीं है, क्योंकि हम अक्सर देखते हैं कि हमें अपने वर्तमान जीवन की अनेक घटनाओं की भी स्मृति नहीं रहती। यदि हम वर्तमान जीवन के विस्मरित भाग को अस्वीकार नहीं करते हैं तो फिर केवल स्मरण के अभाव में पूर्वजन्मों को कैसे अस्वीकार कर सकते हैं । वस्तुतः जिस प्रकार हमारे वर्तमान जीवन की अनेक घटनाएं अचेतन स्तर पर रहती हैं, वैसे ही पूर्वजन्मों की घटनाएं भी अचेतन स्तर पर बनी रहती हैं और विशिष्ट अवसरों पर चेतना के स्तर १. जैन साइकालॉजी, पृ० १७५. २. नई दुनिया, सोमवार अंक, अप्रैल-मई १९६८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy