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________________ - २६ - १९१ १९६ शंकर का दृष्टिकोण एकान्त एकतत्त्ववादी नहीं है १८८ / शांकर दर्शन की मूलभूत कमजोरी १८९ / (ब) सत् के अनेक, अनित्य और भौतिक स्वरूप की नैतिक समीक्षा बौद्ध दर्शन का अनित्यवादी दृष्टिकोण १९१ | अनित्यवाद एवं क्षणिकवाद १९२ | बुद्ध का अनित्यवाद उच्छेदवाद नहीं है १९२ / सत् के सम्बन्ध में जैन दृष्टिकोण १९४ / जैन दृष्टि कोण की गीता से तुलना १९६ / ३. जैन, बौद्ध और गीता की तत्त्वयोजना की तुलना जैन तत्त्व योजना एवं उसकी नैतिक प्रकृति १९६ / बौद्ध तत्व योजना एवं उसकी नैतिक प्रकृति १९७ / जैन तत्त्व योजना से तुलना १९८ / गीता की तत्त्व योजना १९८ / जैन, बौद्ध और गीता के तत्त्वों की तुलनात्मक तालिका १९९ / ४. नैतिक मान्यताएँ पाश्चात्य आचार दर्शन की नैतिक मान्यताएँ २०० / भारतीय आचार दर्शन की नैतिक मान्यताएँ २०१ / जैन दर्शन की नैतिक मान्यताएँ २०१ | बौद्ध आचारदर्शन की नैतिक मान्यताएँ २०१ / गीता की नैतिक मान्यताएँ २०२ / १९९ आत्मा का स्वरूप और नैतिकता २०५ २०६ २०७ २०९ १. नैतिकता और आत्मा २. आत्मा के प्रत्यय की आवश्यकता ३. आत्मा का अस्तित्व ४. आत्मा एक मौलिक तत्त्व आक्षेप एवं निराकरण २१० / ५. आत्मा और शरीर का सम्बन्ध ( अ ) जैन दृष्टिकोण २१३ / ( ब ) बौद्ध दृष्टिकोण २१३ / (स) गीता का दृष्टिकोण २१३ / ६. आत्मा के लक्षण २१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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