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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारक्शनों का तुलनात्मक अध्ययन कमों के औचित्य और अनौचित्य का नैतिक निर्णय करता है। लेकिन उसकी वह चेतना तो प्रवाह है । अतः जिसे नैतिक या अनैतिक कर्मों का कर्ता माना जाय अथवा उत्तरदायी बनाया जाय, ऐसी कोई चेतना बच नहीं रहती। नदी के प्रवाह में डुबानेवाली जल-धारा के समान वह तो परिवर्तनशील है । वास्तविक दृष्टि से देखें तो डूबने की क्रिया मात्र है, डुबानेवाला कोई नहीं। क्रिया सम्पन्न होने तक भी जिसका अस्तित्व नहीं रहता, उसे कर्ता कैसे कहा जाय ? फिर भी, व्यावहारिक दृष्टि से व्यक्ति को कर्ता माना गया है । बुद्ध कहते हैं, अपने से उत्पन्न, अपने से किया पाप, अपने कर्ता दुर्बुद्धि मनुष्य को वैसे ही विदीर्ण कर देता है जैस मणि को वज्र काट देता है। अपने से किया पाप अपने को ही मलिन करता है, अपने से पाप नहीं करे तो स्वयं ही शुद्ध रहता है। शुद्धि-अशुद्धि प्रत्येक की अलग है, दूसरा दूसरे को शुद्ध नहीं कर सकता। इस प्रकार नैतिक जीवन की दृष्टि से बौद्ध दर्शन 'प्रवाही आत्मा' को कर्ता एव उत्तरदायी मानता है। गोता का दृष्टिकोण
गीता कूटस्थ आत्मवाद को मानती है। गीता में ऐसे वचनों का अभाव नहीं है जो आत्मा के अकर्तृत्व को सूचित करते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो पुरुष सम्पूर्ण कर्मों को सब प्रकार से प्रकृति से ही किये हुए देखता है तथा आत्मा को अकर्ता देखता है, वही सम्यक् द्रष्टा है। सम्पूर्ण कर्म प्रकृति के गुणों द्वारा किये हुए हैं, तो भी अहंकार से मोहित अन्तःकरणवाला पुरुष 'मैं कर्ता हूँ', ऐसा मान लेता है।' हे अर्जुन, गुणविभाग और कर्मविभाग के तत्त्व को जाननेवाला ज्ञानी पुरुष सम्पूर्ण गुण गुणों में वर्तते हैं, ऐसा मानकर आसक्त नहीं होता।" गुणातीत होने से यह अविनाशी परमात्मा शरीर में स्थित होते हुए भी वास्तव में न करता है ( और ) न लिप्त होता है। __ इस प्रकार गीता में आत्मा को अकर्ता माना गया है। फिर भी गीतोक्त नैतिक आदेशों का पालन नहीं करने से प्रत्युत्पन्न उत्तरदायित्व की संगत व्याख्या आत्मा के कर्तृत्व को माने बिना नहीं हो पाती। गीता में आत्मा को अकर्ता कहने का अर्थ इतना ही है कि प्रकृति से भिन्न विशुद्ध आत्मा अकर्ता है। आत्मा का कर्तृत्व प्रकृति के संयोग से ही है। जैसे जैन दर्शन में तत्त्वदृष्टि से अकर्ता आत्मा में कर्मपुद्गलों के निमित्त से कर्तृत्वभाव माना गया है, वैसे ही गीता में भी अकर्ता आत्मा में प्रकृति
१. धम्मपद, १६१. २. वही, १६५. ३. गीता, १३।२६. ४. वही, श२७. ५. वहीं, ३२२८. ६. वही, १३।३१.
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