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________________ भाचारदर्शन के तात्त्विक आधार १८३ रहस्य को समझने के लिए बौद्धिक गहराइयों में उतरना प्रारम्भ किया, तो परिणामस्वरूप सत् सम्बन्धी विभिन्न दृष्टिकोणों का उद्भव हुआ । यद्यपि परमसत्ता, परमार्थ या सत् जो भी और जैसा भी है, वह है । लेकिन जब उसे इन्द्रियानुभव, बुद्धि और अन्तर्दृष्टि आदि विविध साधनों के द्वारा जानने एवं विवेचित करने का प्रयत्न किया जाता है, तो वह इन साधनों की विविधताओं तथा वैचारिक दृष्टिकोणों की विभिन्नता से विविध रूप हो जाता है । इसी बात को स्पष्ट करते हुए ऋग्वेद का ऋषि कहता है "एक सद् विप्राः बहुधा वदन्ति" एक ही सत् को विद्वान् अनेक प्रकार से कहते हैं।' जिन्होंने मात्र इन्द्रिय-अनुभवों की प्रामाणिकता को स्वीकार कर उसे समझने का प्रयत्न किया उन्हें वह अनेक और परिवर्तनशील प्रतीत हुआ, और जिन्होंने इन्द्रिय-अनुभवों को प्रामाणिकता में सन्देह कर केवल बुद्धि के माध्यम से उसे समझने का प्रयास किया, उसे अद्वय, अव्यय और अविकार्य ( अपरिणामी ) पाया। संक्षेप में सत् सम्बन्धी दृष्टिकोणों को विभिन्नता के निम्न कारण दिये जा सकते हैं१. इन्द्रियानुभव, बौद्धिक ज्ञान, अन्तर्दृष्टि आदि ज्ञान के साधनों की विविधता । २. व्यक्तियों के दृष्टिकोणों, ज्ञानात्मक स्तरों तथा वैचारिक परिवेशों की विभिन्नताएँ। ३. भाषा की अपूर्णता तथा तज्जनित अभिव्यक्ति सम्बन्धी कठिनाइयाँ । ४. सत् एक पूर्णता है, ज्ञाता मनस् उसका ही एक अंश है, अंश अंशी को पूर्णरूपेण नहीं जान सकता । इस प्रकार हमारे ज्ञान की आंशिकता भी सत् सम्बन्धी दृष्टिकोणों की विविधता का कारण है। भारतीय चिन्तन में सत् सम्बन्धो विभिन्न दृष्टिकोण _दार्शनिक जगत् में सत्-सम्बन्धी विभिन्न दृष्टिकोणों के मूल में प्रमुख रूप से तीन प्रश्न रहे हैं (अ) सत् के एकत्व और अनेकत्व का प्रश्न : इस सन्दर्भ में प्रमुख रूप से तीन सिद्धान्त सामने आये हैं। (१) एकत्ववाद ( Monoism ), (२) द्वितत्त्ववाद ( Dualism ) और (३) बहुतत्त्ववाद ( Pluralism ) । (ब) सत् के परिवर्तनशील या अपरिवर्तनशील होने का प्रश्न : इस सम्बन्ध में प्रमुख रूप से दो सिद्धान्त हैं-(१) सत् निर्विकार एवं अव्यय है ( Being is Real ) और (२) सत् का लक्षण परिवर्तनशीलता है या परिवर्तन हो सत् है ( Becoming is Real )। (स) सत् के भौतिक या आध्यात्मिक स्वरूप का प्रश्न : इस सम्बन्ध में भी प्रमुख रूप से दो दृष्टिकोण हैं-(१) भौतिकवाद ( Materialism ) और (२) अध्यात्मवाद ( Idealism )। १. ऋग्वेद, १.१६४।४६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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