________________
१४२
जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
रूप में जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों में उपलब्ध है । ये आचारदर्शन आत्मचेतनता को अप्रमत्तता या आत्मजागृति कहते हैं । जैन दर्शन के अनुसार प्रमाद आत्मविस्मृति की अवस्था है और उसे अनैतिकता का प्रमुख आधार कहा गया है । जो भी क्रियाएँ प्रमाद का कारण हैं या प्रमादपूर्वक की जाती हैं, वे सभी अनैतिक हैं । आचारांग में कहा गया है कि जो प्रसुप्त चेतनावाला है वह अमुनि ( अनैतिक ) है और जो जाग्रत चेतनावाला है वह मुनि ( नैतिक ) है | " कृतांग में प्रमाद को कर्म और अप्रमाद को अकर्म कहकर यही कहा गया है कि जो क्रियाएँ आत्मविस्मृति को लाती हैं वे बन्धनकारक हैं, इसलिए अनैतिक भी हैं । इसके विपरीत, जो क्रियाएँ अप्रमत्त चेतना की अवस्था में बन्धनकारक नहीं होतीं और वे पूर्णतया विशुद्ध और नैतिक हैं । फिटे का आत्मचेतनतावादी दृष्टिकोण जैन विचारणा के अति निकट है ।
सूत्र
२
सम्पन्न होती हैं
इस प्रकार वारनर
बौद्ध दर्शन में भी आत्मचेतनता को नैतिकता का प्रमुख अधार माना गया है । बुद्ध स्पष्ट कहते हैं कि अप्रमाद अमरता का मार्ग है और प्रमाद मृत्यु का । 3 बौद्ध दर्शन में अष्टांग साधना मार्ग में सम्यक् स्मृति भी इस बात को स्पष्ट करती है कि आत्मस्मृति या जाग्रत चेतना नैतिकता का आधार है जबकि आत्मविस्मृति अनैतिकता का आधार है । नन्द को उपदेश देते हुए बुद्ध कहते हैं कि जिसके पास स्मृति नहीं है उसे आर्य सत्य कहाँ से प्राप्त होगा; इसलिए चलते हुए चल रहा हूँ, खड़े होते हुए खड़ा हो रहा हूँ एवं इसी प्रकार दूसरे कार्य करते समय अपनी स्मृति बनाये रखो। इस प्रकार बुद्ध भी आत्मचेतनता को नैतिक जीवन का केन्द्र स्वीकार
करते हैं ।
गीता में भी सम्मोह से स्मृतिविनाश और स्मृतिविनाश से बुद्धिनाश ऐसा कहकर यही बताया गया है कि आत्मचेतनता नैतिक जीवन के लिए आवश्यक है ।" २. विवेकवाद और जैन दर्शन
मानवतावाद के समकालीन विचारकों में दूसरा वर्ग विवेक को प्राथमिक मानवीय गुण मानता है । सी० बी० गर्नेट और इसराइल लेविन के अनुसार नैतिकता विवेकपूर्ण जीवन जीने में है । गर्नेट के अनुसार विवेक तार्किक संगति नहीं, वरन् जीवन में कौशल या चतुराई है । बौद्धिकता या तर्क उसका एक अंग हो सकता है, समग्रता नहीं । गर्नेट अपनी पुस्तक 'विजडम ऑफ कण्डक्ट' में प्रज्ञा को ही सर्वोच्च
१. आचारांगं, ११।३.
२. सूत्रकृतांग, ११८ ३.
३.
धम्मपद, २।१.
४. सौन्दरनन्द, १४।४३-४५.
५. गीता, २/६३.
६. देखिए (अ) कण्टेम्पररि एथिकल थ्योरीज, पृ० १८१-१८४. (ब) विजडम आफ कण्डक्ट-सी० बी० गर्नेट.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org