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________________ १२० जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन ____ इस प्रकार जैन आचारदर्शन में सुख की अभिलाषा को प्राणियों की प्रकृति का स्वाभाविक लक्षण मानकर मनोवैज्ञानिक सुखवाद की धारणा को स्थान दिया गया है। इतना ही नहीं, जैन विचारकों ने इस मनोवैज्ञानिक सुखवादी धारणा का अपनी नैतिक मान्यताओं के संस्थापन में भी उपयोग किया है । सूत्रकृतांग में प्राणियों की सुखाकांक्षा और दुःख से रक्षण की मनोवैज्ञानिक प्रकृति का नैतिक मानक के रूप में सुन्दर वर्णन है। सूत्रकृतांग का वह कथाप्रसंग इस प्रकार है, "क्रियावादी अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी ऐसे विभिन्न वादी, जिनकी संख्या ३६३ कही जाती है ( जो ) सब लोगों को परिनिर्वाण और मोक्ष का उपदेश देते हैं। वे अपनी-अपनी प्रज्ञा, छन्द, शील, दृष्टि, रुचि, प्रवृत्ति और संकल्प के अनुसार अलगअलग धर्म मार्ग स्थापित करके उनका प्रचार करते हैं। एक समय ये सब वादी एक बड़ा घेरा बनाकर एक स्थान पर बैठे थे। उस समय एक मनुष्य जलते हुए अंगारों से भरी हुई एक कढ़ाई लोहे की संडासी से पकड़ कर, जहाँ वे सब बैठे थे, लाया और कहने लगा, 'हे मतवादियों, तुम सब अपने-अपने धर्म के प्रतिपादक हो और परिनिर्वाण और मोक्ष का उपदेश देते हो। तुम इस जलते हुए अंगारों से भरी हुई कढ़ाई को एक मुहूर्त तक खुले हुए हाथ में पकड़े रहो।' ऐसा कहकर वह मनुष्य वह कढ़ाई प्रत्येक के हाथ में रखने गया, पर वे अपने-अपने हाथ पीछे हटाने लगे। तब उस मनुष्य ने उनसे पूछा, 'हे मतवादियों, तुम अपने हाथ पीछे क्यों हटाते हो ? हाथ न जले, इसीलिए ? और जले, तो क्या हो ? दुःख ? दुःख न हो, इसलिए अपने हाथ पीछे हटाते हो, यही बात है न ?' तो इसी माप से दूसरों के सम्बन्ध में भी विचार करना, यही धर्मविचार है या नहीं ? बस, तब तो नापने का गज प्रमाण और धर्मविचार मिल गये ।"१ यह प्रसंग जैन नैतिकता की मनौवैज्ञानिक सुखवादी धारणा का एक अच्छा चित्रण है जिसमें न केवल नैतिकता का मनोवैज्ञानिक पक्ष प्रस्तुत है, वरन् उसे नैतिक सिद्धान्तों की स्थापना का आधार भी बनाया गया है। फिर भी तुलनात्मक दष्टि से इस मनोवैज्ञानिक सुखवाद के दोनों पक्षों पर विचार करना आवश्यक है। निषेधात्मक दृष्टि से यह प्राणियों की दुःख-निवारण की स्वाभाविक प्रवृत्ति को अभि- . व्यक्त करता है, जबकि विधायक दृष्टि से प्राणियों की सुख प्राप्त करने की स्वाभाविक अभिरुचि की ओर संकेत करता है। __ अन्य भारतीय दर्शनों में मनोवैज्ञानिक सुखवाद--न केवल जैन दर्शन वरन अन्य भारतीय दर्शनों ने भी सुखवाद का समर्थन किया है। भौतिक सुखवाद को माननेवाले चार्वाकों का सिद्धान्त तो सर्वप्रसिद्ध ही है। उनके अनुसार इन्द्रियों की वासनाओं को सन्तुष्ट करते हुए सम्पूर्ण जीवन में सुख को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए ।२ चार्वाक के अतिरिक्त अन्य दर्शनकारों ने भी सुखवाद का समर्थन १. सूत्रकृतांग (हिन्दी), पृ० १०३-१०४. २. सर्वदर्शनसंग्रह; पृ० ४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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