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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन नैतिक इन्द्रिय और ईश्वरीय बुद्धि भी कहा है । यही हमारी अन्तरात्मा का स्थायीभाव और हृदय का प्रत्यक्ष भी है। बटलर के अनुसार अन्तरात्मा के दो पहलू हैं(१) शुद्ध ज्ञान और (२) सर्वाधिकारिता । सर्वाधिकारी होने के कारण वह क्रियाप्रेरक और सुधारक भी है; और शुद्ध ज्ञानमय होने के कारण वह कर्मों के
औचित्य और अनौचित्य का विवेक भी करता है तथा सत्कर्म और सुख में एवं असत्कर्म और दुःख में एक निश्चित सम्बन्ध भी देखता है।
बटलर के उपर्युक्त दृष्टिकोण की जैन दर्शन से तुलना करने पर कहा जा सकता है कि ज्ञानमय आत्मा ही नैतिक जीवन का अन्तिम निर्णायक तत्त्व है । जैन दार्शनिकों ने इसे आवश्यक माना है कि नैतिक विवेक करते समय आत्मा को राग
और द्वेष की भावनाओं से ऊपर उठा हुआ होना चाहिए । राग और द्वेष से ऊपर उठी हुई आत्मा जहाँ एक ओर सन्मार्ग की प्रेरक है, वहीं यथार्थ नैतिक निर्णय करने में सक्षम भी है। राग और द्वेष की वृत्तियों से अलग हटकर आत्मा जब कोई भी विवेकपूर्ण निर्णय करता है अथवा कर्म करता है तो वह शुभ होता है । इसके विपरीत कषाय या राग-द्वेष से प्रभावित होकर कोई निर्णय करता है तो वह अशुभ होता है । जैन दार्शनिकों ने अन्तरात्मा में विवेक और पुरुषार्थ ( वीर्य ) दोनों को स्वीकार किया है जो कि बटलर के शुद्ध ज्ञान और सर्वाधिकारिता के समान है । जैन दर्शन भी बटलर के समान आत्मा के ज्ञानात्मक तथा भावात्मक ( दर्शन ) दोनों ही पक्ष स्वीकार करता है जो पारिभाषिक शब्दावली में ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग कहे जाते हैं।
बटलर ने मानवप्रकृति के पूर्वोक्त चार तत्त्वों में एक आनुपूर्वी को स्वीकार किया है जिसमें सबसे नीचे वासनाएँ हैं और सबसे ऊपर अन्तरात्मा है । जैसे पशुबल बुद्धिबल के अधीन हो जाता है उसी प्रकार वासनाबल, स्वप्रेम और परहित अन्तरात्मा के अधीन हो जाते हैं । जैन परम्परा के अनुसार भी नैतिक विकास की दिशा में वासनाबल क्षीण होता जाता है और कर्मों का नियमन शुद्ध राग-द्वेष से रहित आत्मा के द्वारा होने लगता है। बटलर की अन्तरात्मा ईश्वरीय बुद्धि के रूप में जैन परम्परा की वीतराग आत्मा से तुलनीय है। इस प्रकार, बटलर के नैतिक अन्तरात्मवाद और जैन परम्परा में बहुतकुछ साम्य खोजा जा सकता है।
फिर भी बटलर के सिद्धान्त की मूलभूत कमजोरी यह है कि अन्तरात्मा जब दो विपरीत आदेश देती है तो उनके अन्तर्विरोध को दूर करना कठिन हो जाता है । किंकर्तव्यविमूढ़ता की अवस्था में बटलर की अन्तरात्मा नैतिक समस्या का समाधान प्रस्तुत नहीं करती।
(उ) मनोवैज्ञानिक अन्तरात्मवाद --मनोवैज्ञानिक अन्तरात्मवाद के प्रवर्तक मार्टिन्यू हैं । मार्टिन्यू ने अपने सिद्धान्त का बहुतकुछ विकास बटलर के अन्तरात्म१. विस्तृत विवेचना के लिए देखिए-(अ) नीतिशास्त्र ( सिन्हा ), पृ० १२१-१२६;
(ब) टाइप्स आफ एथिकल थ्योरीज, मार्टिन्यू.
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