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________________ १११ भारतीय और पाश्चात्य नैतिक मानदण्ड के सिद्धान्त चिन्तकों में एडवर्ड वेस्टरमार्क, अर्थर केनिआन रोजर्स और फेंक चेपमेनशार्प प्रमुख हैं।' भारतीय परम्परा में आन्तरिक विधानवाद का समर्थन मनु के युग से ही मिलता है। मनु ने 'मन:पूतं समाचरेत' कहकर इसी अन्तरात्मक विधानवाद का समर्थन किया है । २ महाभारत के अनुशासनपर्व में भी कहा गया है, 'सुख-दुःख, प्रिय-अप्रिय, दान और त्याग सभी में अपनी आत्मा को प्रमाण मानकर ही व्यवहार करना चाहिए।"3 आन्तरिक ( अन्तरात्मक ) विधानवाद की यह धारणा जैन और बौद्ध परम्परा में भी स्वीकृत रही है । लेकिन जैन और बौद्ध परम्पराएँ इस बात को स्पष्ट कर देती हैं कि अन्तरात्मा के आदेश को उसी समय प्रामाणिक माना जाता है जब वह राग और द्वेष से ऊपर उठकर कोई निर्णय ले । अन्तरात्मा को नैतिकता का प्रतिमान स्वीकार करने के लिए यह शर्त आवश्यक है, अन्यथा राग-द्वेष से युक्त वासनामय आत्मा के आदेशों को भी नैतिक मानना पड़ेगा जो कि हास्यास्पद होगा। अतः यह दृष्टिकोण समुचित ही है कि राग-द्वेष से रहित साक्षी स्वरूप अन्तरात्मा को ही नैतिकता का प्रतिमान स्वीकार किया जाय । पाश्चात्य परम्परा के अन्तरात्मक विधानवादी विचारकों ने इस सम्बन्ध में गहराई से विचार नहीं किया और फलस्वरूप उनकी आलोचना की गयी। भारतीय विचारक इस सम्बन्ध में सजग रहे हैं। उनके अनुसार आत्मा का राग-द्वेष से रहित जो शुद्ध स्वरूप है वही नैतिकता का प्रतिमान हो सकता है और यदि इस रूप में हम अन्तरात्मा को नैतिकता का प्रतिमान स्वीकार करेंगे तो उसका ईश्वरीय विधानवाद और आत्मपूर्णतावाद से भी कोई विरोध नहीं रहेगा। नैतिक प्रतिमान को आन्तरिक विधान के रूप में माननेवाले विचारकों में अन्तरात्मा या अन्तर्दृष्टि ( Intuition ) के स्वरूप के विषय में अलग-अलग दृष्टिकोण हैं और उनके अलग-अलग सम्प्रदाय भी हैं। प्रमुख रूप से उन सम्प्रदायों को निम्न वर्गों में रखा जा सकता है-(अ) बुद्धिवाद या ताकिक सहज ज्ञानवाद, (आ) रसेन्द्रियवाद या नैतिक इन्द्रियवाद, (इ) सहानुभूतिवाद, (ई) नैतिक अन्तरात्मवाद, (उ) मनोवैज्ञानिक अन्तरात्मवाद । (अ) बुद्धिवाद और जैन दर्शन--कैम्ब्रिज प्लेटोवादियों ने, जिनमें बेंजामिन विचकोट, राल्फ कडवर्थ, हेनरी मोर, रिचर्ड कम्बरलेन, सैमुअल क्लार्क और विलियम वुलेस्टन प्रमुख हैं, अन्तरात्मा को बौद्धिक या तार्किक माना है। उनकी दृष्टि में अन्तर्दृष्टि ( प्रज्ञा ) तर्कमय है । राल्फ कडवर्थ के अनुसार सद्गुण और अवगुण के अपने-अपने स्वरूप हैं। वे वस्तुमूलक एवं वस्तुतन्त्र हैं, न कि आत्मतन्त्र । वह उन्हें ज्ञानाकार प्रत्यय स्वरूप मानता है। उसके अनुसार हम शुभ और अशुभ का ज्ञान ठीक वैसे ही प्राप्त कर सकते हैं, जैसे तर्कशास्त्र के प्रत्ययों का ज्ञान । वे इन्द्रिय१. कण्टेम्पररि एथिकल थ्योरीज, पृ० ६१-७३. २. मनुस्मृति, ६।४६. ३. महाभारत, अनुशासनपर्व, ११३।९-१०. ४. देखिए-नीतिशास्त्र का सर्वेक्षण, पृ० ११०-११९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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