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________________ ११० जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन बौद्ध परम्परा में भी बुद्ध द्वारा प्रणीत नियमों का पालन करना नैतिकता का प्रतिमान माना गया है। सम्पूर्ण विनयपिटक और सुत्तपिटक में नैतिक जीवन के नियमों का प्रतिपादन है और आज भी बौद्ध उपासक उन्हें नैतिकता एवं अनैतिकता के प्रतिमान के रूप में स्वीकार करते हैं। बुद्ध ने स्वयं यह कहा था कि 'जो धर्म को देखता है वह मुझे देखता है और जो मुझे देखता है वह धर्म को देखता है ।' बुद्ध ने अपने परिनिर्वाण के समय भी अन्तिम बार भिक्षुओं को आमन्त्रित करके कहा, "हे आनन्द, शायद तुमको ऐसा हो, हमारे शास्ता चले गये--अब हमारा शास्ता नहीं है । आनन्द, ऐसा मत समझना। मैंने जो धर्म और विनय के उपदेश दिये हैं, प्रज्ञप्त किये हैं, मेरे बाद वे ही तुम्हारे शास्ता होंगे ।" २ जैन परम्परा में भी जिनवचनों का पालन करना नैतिक जीवन का आवश्यक अंग माना गया है। सर्वज्ञप्रणीत शास्त्रों की आज्ञाओं का पालन करना प्रत्येक गृहस्थ एवं श्रमण के लिए आवश्यक है। आचारांगसूत्र में महावीर कहते हैं कि मेरी आज्ञाओं का पालन धर्म है। इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन परम्परा में भी विधानवाद का स्थान है। जैन आचारदर्शन वीतराग पुरुषों अथवा तीथंकरों के आदेशों को नैतिक जीवन का प्रतिमान स्वीकार करता है । फिर भी इतना स्पष्ट है कि यदि नैतिकता के प्रतिमान के रूप में बाह्य आदेशों को ही सब कुछ मान लिया गया तो नैतिकता आन्तरिक वस्तु नहीं रह जायेगी । बाह्य आदेश 'करना चाहिए' के स्थान पर 'करना पड़ेगा' की प्रकृति का होता है। वह बहुत कुछ पुरस्कार की आशा एवं दण्ड के भय पर निर्भर होता है, अतः उसे पूर्ण रूप से नैतिकता का प्रतिमान स्वीकार नहीं किया जा सकता । नैतिक जीवन में ईश्वर, बुद्ध या जिन के वचन मार्गदर्शक हो सकते हैं, लेकिन कर्तव्य की भावना का उद्भव तो हमारे अन्दर से ही होना चाहिए। यदि अमनस्क भाव से नैतिक आदेशों का पालन किया भी जाता है तो उससे कोई व्यक्ति नैतिक नहीं बन जाता । नैतिकता अन्तरात्मा की वस्तु है। उसे बाह्य विधानों के आश्रित नहीं माना जा सकता। २. आन्तरिक विधानवाद आन्तरिक या अन्तरात्मक विधानवाद के अनुसार शुभ और अशुभ का निर्णायक तत्त्व व्यक्ति की अन्तरात्मा है । अपनी अन्तरात्मा के अनुसार आचरण करना शुभ और उसके प्रतिकूल आचरण करना अशुभ माना गया है। पाश्चात्य परम्परा में अन्तरात्मक विधानवाद के प्रतिपादकों में हेनरी मोर, रल्फ कडवर्थ, सैमुअल क्लार्क, विलियम वुलेस्टन, शेफ्ट्सबरी, हचिसन और बटलर की एक लम्बी परम्परा है। समकालीन १. इतिवृत्तक, १५।३ ( पृ०५१). २. दीघनिकाय, महापरिनिब्बाणसुत्त, २।३. ३. आचारांग, १।६।२।१८१. ४. नीतिशास्त्र का सर्वेक्षण, पृ० ११०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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