SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डॉ० सदाशिव बनर्जी का भी मैं अत्यन्त आभारी हूँ जिनकी आत्मीयता, सहयोग एवं निर्देशन से लाभान्वित हुआ हूँ और जिनका मृदु, निश्छल एवं सरल स्वभाव सदैव ही उनके प्रति मेरी श्रद्धा का केन्द्र रहा है । मित्रवर डॉ. अशोक कुमार लाड एवं प्रो० गोविन्ददास माहेश्वरी का भी मैं आभारी हूँ, उनके बहुविध सहयोग को भुलाया नहीं जा सकता है। __ प्राकृत भारती संस्थान के सचिव श्री देवेन्द्रराज मेहता एवं श्री विनयसागरजी का भी मैं अत्यन्त अभारी हूँ, जिनके सहयोग से यह प्रकाशन सम्भव हो सका है। महावीर प्रेस ने जिस तत्परता और सुन्दरता से यह कार्य सम्पन्न किया है, उसके लिए उनके प्रति आभार व्यक्त करना भी मेरा कर्तव्य है। मित्रवर श्री जमनालालजी जैन ने इसकी प्रेस कापी तैयार करने में सहयोग प्रदान किया है अतः उनके प्रति भी हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ। मैं पार्श्वनाथ विद्याश्रम परिवार के डॉ० हरिहर सिंह, श्री मोहनलाल जी, श्री मंगल प्रकाश मेहता तथा शोध छात्र, श्री रविशंकर मिश्र, श्री अरुण कुमार सिंह, श्री भिखारी राम यादव और श्री विजयकुमार जैन का आभारी हूँ, जिनसे विविधरूपों में सहायता प्राप्त होती रही है। अन्त में पूज्य पिता श्री राजमलजी शक्कर वाले, मातु श्री गंगाबाई, भाई कैलाश एवं पत्नी श्रीमती कमला जैन का भी मैं अत्यन्त आभारी हूँ, जिन्होंने मुझे विद्या की उपासना का अवसर दिया। श्रमण विद्या के प्रकाण्ड विद्वान् प्रोफेसर पं० जगन्नाथ जी उपाध्याय ने हमारी प्रार्थना को स्वीकार कर एवं ग्रन्थ का समग्रतया अवलोकन कर भूमिका लिखने की कृपा की, एतदर्थ हम उनके अत्यन्त आभारी हैं। ___इस सम्पूर्ण प्रयास में मेरा अपना कुछ भी नहीं है, सभी कुछ गुरुजनों का दिया हुआ है, इसमें मैं अपनी मौलिकता का भी क्या दावा करूँ? मैंने तो अनेकानेक महापुरुषों, ऋषियों, सन्तों, विचारकों एवं लेखकों के शब्द एवं विचार-सुमनों का संचय कर माँ सरस्वती के समर्पण के हेतु इस माला का प्रथन किया है, इसमें जो कुछ मानव के लिए उत्तम हितकारक एवं कल्याणकारक तत्त्व हैं, वे सब उनके हैं । हाँ, यह सम्भव है कि मेरी अल्पमति एवं मलिनता के कारण इसमें दोष आ गये हों, उन दोषों का उत्तरदायित्व मेरा अपना है। यदत्र सौष्ठवं किंचित्तद्गुर्वोरेव मे न हि । यदत्रासौष्ठवं किंचित्तन्ममैव तयोर्न हि ।। वीर निर्वाण दिवस-दीपावली सागरमल जैन १५ नवम्बर, १९८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy