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नैतिक निर्णय का स्वरूप एवं विषय
९१.
२. कांट के अनुसार, नैतिक निर्णय का विषय कर्ता का संकल्प है। यदि उपर्युक्त घटना के सम्बन्ध में विचार करें तो, कांट के अनुसार, वह व्यक्ति केवल उस व्यक्तिविशेष की हत्या का दोषी होगा, न कि सभी की हत्या का, क्योंकि उसे केवल उसी व्यक्ति की मृत्यु अपेक्षित थी ।
३. मार्टिन्यू के अनुसार, नैतिक निर्णय का विषय वह प्रेरक
होकर कर्ता ने यह कार्य किया है । ऊपर के दृष्टान्त के सन्दर्भ में यदि कर्ता ने उसकी हत्या विशेष स्वार्थ से प्रेरित होकर की, तो लेकिन उसने लोकहित से प्रेरित होकर हत्या की, तो वह निर्दोष ही
है जिससे प्रेरित मार्टिन्यू कहेंगे कि वह दोषी होगा; माना जायेगा ।
४. मैकेंजी अनुसार, कर्ता का चरित्र ही नैतिक निर्णय का विषय है । मान लीजिए, कोई व्यक्ति नशे में गोली चला देता है और उससे किसी की हत्या हो जाती है, तो सम्भव है कि कांट और मार्टिन्यू की दृष्टि में वह निर्दोष हो, लेकिन मैकेंजी की दृष्टि में तो वह अपने दोषपूर्ण चरित्र के कारण दोषी ही माना जायेगा ।
विचारकों ने इन चारों दृष्टिकोणों की छानबीन करने पर उन्हें एकांगी एवं दोषपूर्ण पाया है । किन्तु जैन विचारणा इन चारों विरोधी दृष्टिकोणों में समन्वय करके और उनकी एकांगिता दूर करके एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है ।
जैन विचारणा में शुभ और अशुभ के निकटवर्ती शब्द संबर और आस्रव हैं । हम कह सकते हैं कि जिससे कर्म बन्धन हो वह अशुभ अर्थात् आस्रव है और जिससे बन्धन नहीं होता वह शुभ अर्थात् संवर है । जैन दर्शन में आस्रव के पाँच कारण हैं (१) मिथ्या दृष्टि, (२) कषाय, (३) अविरति, (४) प्रमाद, और ( ५ ) योग संवर के पाँच कारण हैं (१) सम्यग्दृष्टि, (२) विरति, (३) अकषाय, (४) अप्रमाद, और (५) अयोग | पाश्चात्य विचारणा के ( १ ) संकल्प, (२) अभिप्रेरक, (३) चरित्र और (४) अभिप्राय अपने लाक्षणिक अर्थों में निम्न प्रकार से समानार्थक माने जा सकते हैं । १. संकल्प
१. दृष्टि
मिथ्यादृष्टि सम्यग्दृष्टि
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२. प्रेरक ३. चरित्र
४. अभिप्राय
पाश्चात्य विचारणा के ( १ ) संकल्प, ( २ ) प्रेरक, (३) चरित्र, और (४) अभिप्राय क्रमशः जैन दर्शन के आस्रव एवं संवर के पाँच मूल हेतुओं के पर्यायवाची हैं और शुभाशुभ का निर्णय इन पाँचों पर ही होता है । अतः यह मानना पड़ेगा कि जैन दर्शन में पाश्चात्य विचारणा के ये चारों दृष्टिकोण अविरोधपूर्वक समन्वित हैं । उपर्युक्त चार मतवादों ( दृष्टिकोणों ) की यदि भारतीय आचारदर्शनों के साथ तुलना करें तो कह सकते हैं कि गीता का दृष्टिकोण कांट के संकल्पवाद के तथा बौद्ध दर्शन का दृष्टिकोण मार्टिन्यू के अभिप्रेरकवाद के अधिक निकट है,
२. कषाय ( वासना )
३. अविरति
विरति
दुश्चरित्र
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४. प्रमाद
अप्रमाद
५. योग ( शारीरिक, वाचिक और मानसिक क्रियाएँ )
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सच्चरित्र
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