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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
मूल्यांकन करते हैं तो हमें आत्मपरक दृष्टि से करना होगा और उस अवस्था में कार्य का उद्देश्य ही नैतिक निर्णय का विषय होगा | जैनाचारदर्शन की भाषा में कर्मफल के आधार पर कर्म का नैतिक मूल्यांकन करना व्यवहारदृष्टि है और कर्ता के उद्देश्य के आधार पर कर्म का नैतिक मूल्यांकन करना निश्चयदृष्टि है | जैनाचारदर्शन के अनुसार दोनों पक्ष अपने-अपने क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण हैं और समग्र आचारदर्शन की दृष्टि से किसी की अवहेलना नहीं की जा सकती । जहाँ तक आत्मनिष्ठ नैतिकता का प्रश्न है हमें यह स्वीकार करना होगा कि नैतिक निर्णय का
विषय कोई आत्मपरक तथ्य ही हो सकता है, वस्तुपरक तथ्य नहीं । आत्मनिष्ठ नैतिकता में नैतिक निर्णय का विषय कर्ता की मानसिक अवस्थाएँ होती हैं, बाह्य घटनाएँ नहीं । पाश्चात्य विचारक मिल को भी अन्त में यह स्वीकार करना पड़ा कि नैतिक निर्णय का विषय कर्ता द्वारा वांछित परिणाम है, न कि बाह्य रूप में व्यक्त भौतिक परिणाम । लेकिन जैसे ही हम कर्ता के वांछित परिणाम की बात करते हैं, किसी आन्तरिक तथ्य की ओर संकेत करते हैं और नैतिक निर्णय के विषय के रूप में बाह्य घटनाओं या फल के स्थान पर कर्म के मानसिक पक्ष को स्वीकार कर लेते हैं । जैसे ही हम कर्म के भौतिक पक्ष से मानसिक पक्ष की ओर बढ़ते हैं, हमारे विवेचन का केन्द्र कर्म के बदले कर्ता बन जाता है । बाह्य घटित भौतिक परिणाम कर्ता के मानस का प्रतिबिम्ब अवश्य है, लेकिन वह सदैव ही उसे यथार्थ रूप में प्रतिबिम्बित नहीं करता । अत: अभ्रान्त नैतिक निर्णय के लिए कर्म के चैतसिक पक्ष या कर्ता की मानसिक अवस्थाओं पर विचार करना आवश्यक है । ६. नैतिक निर्णय के सन्दर्भ में पाश्चात्य विचारकों के दृष्टिकोण
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जहाँ तक वैयक्तिक नैतिकता का प्रश्न है, सभी विवेच्य आचारदर्शन यह स्वीकार करते हैं कि नैतिक निर्णय का विषय कर्ता की मनोदशाएँ हैं । बाह्य परिणाम तभी तक नैतिक निर्णय का विषय माना जा सकता है जब तक कर्ता की मनोदशा को यथार्थ रूप में प्रतिबिम्बित करता है, लेकिन आचरण का मानसिक पक्ष भी इतना अधिक व्यापक है कि विचारकों ने उसके एक-एक पहलू को लेकर नैतिक निर्णय के विषय की दृष्टि से गहराई से विचार किया है । इसके परिणामस्वरूप चार दृष्टिकोण सामने आये ।
१. मिल का कहना है कि कार्य की नैतिकता पूर्णतः 'अभिप्राय' अर्थात् कर्ता जो कुछ करना चाहता है, उसपर निर्भर है । अभिप्राय से मिल का तात्पर्य कार्य के उस रूप से है जिस रूप में कर्ता उसे करना चाहता है । मान लीजिए, कोई व्यक्ति किसी खास व्यक्ति की हत्या करने के लिए उस सवारी गाड़ी को उलटना चाहता है जिसमें वह व्यक्ति बैठा है । उसका प्रयास सफल होता है, और उस एक व्यक्ति के साथ-साथ और भी बहुत से यात्री मारे जाते हैं । इस घटना में, मिल के अनुसार, उस व्यक्ति को केवल एक व्यक्ति की हत्या का दोषी न मानकर, सभी की हत्या का दोषी माना जायेगा, क्योंकि वह गाड़ी को ही उलटना चाहता है ।
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