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________________ जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारवर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन शिव ( कल्याण ) है। तार्किक निर्णय ज्ञानात्पक हैं और सौन्दर्यविषयक निर्णय अनुभूत्यात्मक, जबकि नैतिक निर्णय संकल्पात्मक हैं।' $ २. नैतिक निर्णय का कर्ता नैतिक निर्णय की सम्भावना के लिए निर्णायक, निर्णय की वस्तु और निर्णय का मानदण्ड तीनों ही आवश्यक हैं। प्रश्न यह है कि नैतिक निर्णय कौन देता है ? नीतिवेत्ताओं का इस सम्बन्ध में मतभेद है। शेफ्ट्स्ब री नैतिक मूल्यांकन के कर्ता के रूप में नीतिविशेषज्ञ को मानते हैं। उनके अनुसार, जिस प्रकार कला का पारखी कला के सम्बन्ध में निर्णय देता है, उसी प्रकार नीतिविशेषज्ञ नैतिक कर्मों के बारे में निर्णय देता है। वस्तुतः नैतिक निर्णय का कर्ता हमारी बौद्धिक या आदर्श आत्मा है। एडम स्मिथ ने नैतिक निर्णय का कर्ता निरपेक्ष दृष्टा आत्मा को माना है। उनके अनुसार हमारी हो आत्मा एक तटस्थ निर्णायक के रूप में नैतिक निर्णय देती है। व्यक्ति का निर्णायक उसका आदर्श आत्मा ही है जो एक तटस्थ दृष्टा के रूप में स्वयं के और दूसरों के कर्मों पर नैतिक निर्णय देता है। मैकेंजी ने नैतिक निर्णय का कर्ता उस दृष्टिकोण को माना है जिससे भला या बुरा कर्म किया जाता है । इस प्रकार नैतिक निर्णय का कर्ता या तो निरपेक्ष दृष्टा या आदर्श आत्मा को माना गया है, या कर्ता के उस दृष्टिकोण को जिसके आधार पर कोई कर्म भला या बुरा निर्धारित किया जाता है। यदि इस प्रश्न को जैन दृष्टिकोण से देखा जाय तो उपर्युक्त दोनों दृष्टिकोणों में कोई विरोध नहीं रहता । जैन दर्शन के अनुसार, यथार्थ नैतिक निर्णय तो निरपेक्ष दृष्टा वीतराग आत्मा के द्वारा ही हो सकते हैं, लेकिन व्यावहारिक जीवन में हमारे दृष्टिकोण ही नैतिक निर्णय के आधार बनते हैं। व्यक्ति अपने दृष्टिकोण के आधार पर ही अच्छे या बुरे का निर्णय लेता है। $३. हेतुवाद और फलवाद की समस्या ___ कर्ता का प्रत्येक कर्म जो नैतिक मूल्यांकन का विषय बनता है, किसी उद्देश्य से अभिप्रेरित होकर प्रारम्भ होता है और अन्त में किसी परिणाम को निष्पन्न करता है। इस प्रकार कार्य का विश्लेषण यह दर्शाता है कि प्रत्येक कार्य में एक हेतु होता है जिससे कार्य का प्रारम्भ होता है और एक फल होता है जिसमें कार्य की परिसमाप्ति होती है। हेतु को कार्य का मानसिक पक्ष और फल को उसका भौतिक परिणाम कहा जा सकता है। हेतु का कर्ता के मनोभावों से निकट सम्बन्ध है. जबकि फल का निकट सम्बन्ध कर्म से है। हेत पर दिया गया निर्णय कर्ता के सम्बन्ध में होता है जबकि फल पर दिया गया निर्णय कर्म या कृत्य के सम्बन्ध में होता है। नीतिज्ञों के लिए यह प्रश्न विवादपूर्ण रहा है कि कार्य के शभत्व एवं अशुभत्व का मूल्यांकन उसके हेतु के सम्बन्ध में किया जाय या उसके फल के सम्बन्ध में, क्योंकि कभी-कभी शुभत्व एवं अशुभत्व की दृष्टि से हेतु और फल परस्पर भिन्न होते हैं-शुभ हेतु में भी अशुभ परिणाम की निष्पत्ति और अशुभ हेतु में भी शुभ १. देखिए-नीतिशास्त्र का सर्वेक्षण, पृ० ७२-७४. २. नीतिशास्त्र, पृ० ४९. ३. A Manual of Ethics, p. 50. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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